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स मा॒तरा॒ सूर्ये॑णा कवी॒नामवा॑सयद्रु॒जदद्रिं॑ गृणा॒नः। स्वा॒धीभि॒र्ऋक्व॑भिर्वावशा॒न उदु॒स्रिया॑णामसृजन्नि॒दान॑म् ॥२॥

English Transliteration

sa mātarā sūryeṇā kavīnām avāsayad rujad adriṁ gṛṇānaḥ | svādhībhir ṛkvabhir vāvaśāna ud usriyāṇām asṛjan nidānam ||

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Pad Path

सः। मा॒तरा॑। सूर्ये॑ण। क॒वी॒नाम्। अवा॑सयत्। रु॒जत्। अद्रि॑म्। गृ॒णा॒नः। सु॒ऽआ॒धीभिः॑। ऋक्व॑ऽभिः। वा॒व॒शा॒नः। उत्। उ॒स्रिया॑णाम्। अ॒सृ॒ज॒त्। नि॒ऽदान॑म् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:32» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (सूर्येण) सूर्य्य के सहित बिजुलीरूप अग्नि (अद्रिम्) मेघ को (रुजत्) स्थिर करता और (कवीनाम्) विद्वानों के (मातरा) माता-पिता को (अवासयत्) वसाता है, वैसे ही जो राजा (स्वाधीभिः) सुन्दर स्थान जिनके उन नीतियों और (ऋक्वभिः) प्रशंसा के योग्य व्यवहारों के साथ (गृणानः) स्तुति करता और (वावशानः) कामना करता हुआ जैसे सूर्य्य (उस्रियाणाम्) किरणों के (निदानम्) निश्चय को, वैसे निश्चय को (उत्, असृजत्) उत्पन्न करता है (स) वह राजा सब से सत्कार करने योग्य है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जैसे सूर्य्य किरणों से सबको प्रकाशित करता है, वैसे ही विनय आदिकों से सम्पूर्ण राज्य को प्रकाशित करिये और जैसे श्रेष्ठ पुत्र माता-पिता की सेवा करते हैं, वैसे ही राजधर्म का सेवन करिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा सूर्येणा सहितो विद्युदग्निरद्रिं रुजत् कवीनां च मातराऽवासयत् तथैव स्वाधीभिर्ऋक्वभिस्सह गृणानो वावशानो यथा सवितोस्रियाणां निदानमिव निदानमुदसृजत् स राजा सर्वैः सत्कर्त्तव्यः ॥२॥

Word-Meaning: - (सः) (मातरा) मातापितरौ (सूर्येण) सवित्रा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कवीनाम्) विदुषाम् (अवासयत्) वासयति (रुजत्) रुजति (अद्रिम्) मेघम् (गृणानः) स्तुवन् (स्वाधीभिः) शोभना आधयस्सन्ति यासां ताभिर्नीतिभिः (ऋक्वभिः) प्रशंसनीयैः (वावशानः) कामयमानः (उत्) अपि (उस्रियाणाम्) किरणानामिव (असृजत्) सृजति (निदानम्) निश्चयम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजन् ! यथा सूर्यो रश्मिभिः सर्वं प्रकाशयति तथैव विनयादीभिः सर्वं राज्यं प्रकाशय यथा सत्पुत्रा मातापितरौ सेवन्ते तथैव राजधर्मं सेवस्व ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जसा सूर्यकिरणांसह सर्वांना प्रकाशित करतो तसे विनयाने संपूर्ण राज्याची प्रसिद्धी कर व जसे श्रेष्ठ पुत्र माता व पिता यांची सेवा करतात तसाच राजधर्माचा स्वीकार कर. ॥ २ ॥