स॒त्यमित्तन्न त्वावाँ॑ अ॒न्यो अ॒स्तीन्द्र॑ दे॒वो न मर्त्यो॒ ज्याया॑न्। अह॒न्नहिं॑ परि॒शया॑न॒मर्णोऽवा॑सृजो अ॒पो अच्छा॑ समु॒द्रम् ॥४॥
satyam it tan na tvāvām̐ anyo astīndra devo na martyo jyāyān | ahann ahim pariśayānam arṇo vāsṛjo apo acchā samudram ||
स॒त्यम्। इत्। तत्। न। त्वाऽवा॑न्। अ॒न्यः। अ॒स्ति॒। इन्द्र॑। दे॒वः। न। मर्त्यः॑। ज्याया॑न्। अह॑न्। अहि॑म्। प॒रि॒ऽशया॑नम्। अर्णः॑। अव॑। अ॒सृ॒जः॒। अ॒पः। अच्छ॑। स॒मु॒द्रम् ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनरीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥
हे इन्द्र ! यतस्त्वया निर्मितस्सविता परिशयानमहिमहन्नर्णोऽपः समुद्रमच्छाऽवाऽसृजस्तस्मादन्यस्त्वावान् कोऽप्यन्यो ज्यायान्नास्ति न देवो न मर्त्त्यश्चास्तीति तत्सत्यमिदेवास्ति ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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