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अग्ने॒ स क्षे॑षदृत॒पा ऋ॑ते॒जा उ॒रु ज्योति॑र्नशते देव॒युष्टे॑। यं त्वं मि॒त्रेण॒ वरु॑णः स॒जोषा॒ देव॒ पासि॒ त्यज॑सा॒ मर्त॒मंहः॑ ॥१॥

English Transliteration

agne sa kṣeṣad ṛtapā ṛtejā uru jyotir naśate devayuṣ ṭe | yaṁ tvam mitreṇa varuṇaḥ sajoṣā deva pāsi tyajasā martam aṁhaḥ ||

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Pad Path

अग्ने॑। सः। क्षे॒ष॒त्। ऋ॒त॒ऽपाः। ऋ॒ते॒ऽजाः। उ॒रु। ज्योतिः॑। न॒श॒ते॒। दे॒व॒ऽयुः। ते॒। यम्। त्वम्। मि॒त्रेण॑। वरु॑णः। स॒ऽजोषाः। देव॑। पासि॑। त्यज॑सा। मर्त॑म्। अंहः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:3» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब आठ ऋचावाले तीसरे सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देव) सुख के देनेवाले (अग्ने) बिजुली के सदृश तेजस्वी विद्वान् जैसे (ऋतपाः) सत्य का पालन करने और (ऋतेजाः) सत्य में प्रकट होनेवाला सूर्य्य (उरु) बड़े (ज्योतिः) प्रकाश को (नशते) प्राप्त होता है, वैसे (देवयुः) विद्वानों की कामना करता हुआ (ते) आपके (मित्रेण) मित्र के सहित (वरुणः) श्रेष्ठ (सजोषाः) तुल्य प्रीति का सेवन करनेवाला वर्त्तमान है और (यम्) जिस (अंहः) अपराधी (मर्त्तम्) मनुष्य की (त्वम्) आप (त्यजसा) त्याग से (पासि) रक्षा करते हो (सः) वह पुण्यात्मा होता हुआ (क्षेषत्) निवास करता है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे ईश्वर से रचा गया सूर्य्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे ही विद्वानों के सङ्ग से हुए विद्वान् सब के आत्माओं को प्रकाशित करते हैं और जैसे सूर्य्य अन्धकार का नाश करके दिन को प्रकट करता है, वैसे ही विद्या को प्राप्त हुआ धार्मिक विद्वान् अविद्या का नाश करके विद्या को प्रकट करता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे देवाग्ने ! यथर्तपा ऋतेजाः सूर्य उरु ज्योतिर्नशते तथा देवयुस्संस्ते मित्रेण सहितो वरुणः सजोषा वर्त्तते यमंहो मर्त्तं त्वं त्यजसा पासि स पुण्यात्मा सन् क्षेषत् ॥१॥

Word-Meaning: - (अग्ने) विद्युदिव तेजस्विन् विद्वन् (सः) (क्षेषत्) निवसति (ऋतपाः) य ऋतं सत्यं पाति (ऋतेजाः) य ऋते सत्ये जायते (उरु) बहु (ज्योतिः) प्रकाशम् (नशते) प्राप्नोति (देवयुः) देवान् कामयमानः (ते) तव (यम्) (त्वम्) (मित्रेण) सख्या (वरुणः) वरः (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी (देव) सुखप्रदातः (पासि) रक्षसि (त्यजसा) त्यागेन (मर्त्तम्) मनुष्यम् (अंहः) पापम्। अपराधरूपम् ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथेश्वरेण सृष्टः सूर्य्यः सर्वं जगत् प्रकाशयति तथैव विदुषां सङ्गेन जाता विद्वांसो सर्वेषामात्मनः प्रकाशयन्ति यथा सूर्य्यस्तमो हत्वा दिनं जनयति तथैव जातविद्यो धार्मिको विद्वानविद्यां हत्वा विद्यां प्रकटयति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा ईश्वराने निर्माण केलेला सूर्य संपूर्ण जगाला प्रकाशित करतो तसे विद्वानांच्या संगतीने तयार झालेले विद्वान सर्वांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करतात व जसा सूर्य अंधकार नष्ट करून दिवस उत्पन्न करतो तसे विद्याप्राप्ती केलेले धार्मिक विद्वान अविद्येचा नाश करून विद्या प्रकट करतात. ॥ १ ॥