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उपे॒दमु॑प॒पर्च॑नमा॒सु गोषूप॑ पृच्यताम्। उप॑ ऋष॒भस्य॒ रेत॒स्युपे॑न्द्र॒ तव॑ वी॒र्ये॑ ॥८॥

English Transliteration

upedam upaparcanam āsu goṣūpa pṛcyatām | upa ṛṣabhasya retasy upendra tava vīrye ||

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Pad Path

उप॑। इ॒दम्। उ॒प॒ऽपर्च॑नम्। आ॒सु। गोषु॑। उप॑। पृ॒च्य॒ता॒म्। उप॑। ऋ॒ष॒भस्य॑। रेत॑सि। उप॑। इ॒न्द्र॒। तव॑। वी॒र्ये॑ ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:28» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:8 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के करनेवाले (ऋषभस्य) श्रेष्ठ (तव) आपके (वीर्ये) पराक्रम में प्रजाओं के साथ (उप, पृच्यताम्) सम्बन्ध करिये तथा (रेतसि) पराक्रम में आपको (उप) सम्बन्ध करना चाहिये और (आसु) इन (गोषु) पृथिवियों वा वाणियों में (उपपर्चनम्) समीप सम्बन्ध (उप) सम्बन्ध करना चाहिये और (इदम्) इस राजनीति का (उप) सम्बन्ध करना चाहिये ॥८॥
Connotation: - जो राजा आदि मनुष्य विद्वान् होकर सभा में परस्पर की एक सम्मति करके विरोध के नाश करने से एकता में प्रयत्न करते हैं, वे अखण्डित सामर्थ्यवाले होते हैं ॥८॥ इस सूक्त में गो, इन्द्र, विद्या, प्रजा और राजा के धर्म का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ इस अध्याय में इन्द्र, सोम, सूर्य, प्रातःकाल, राज्य, विश्वेदेव, योधा, मित्रत्व, जगदीश्वर, अग्नि, अन्तरिक्ष, पृथिवी, राजा, प्रजा, पवन, कारीगर, न्यायेश, उपदेशक, वाणी और विद्या के गुणवर्णन करने से इस अध्याय के अर्थ की इससे पूर्व अध्याय के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य विरजानन्द सरस्वती स्वामी जी के शिष्य श्रीमान् दयानन्द सरस्वती स्वामी से रचित उत्तम प्रमाणों से युक्त, ऋग्वेदभाष्य के चतुर्थ अष्टक में छठा अध्याय, पच्चीसवाँ वर्ग और छठे मण्डल में अट्ठाईसवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! ऋषभस्य तव वीर्ये प्रजाभिरुप पृच्यताम् रेतसि च त्वयोप पृच्यतामासु गोषूपपर्चनमुप पृच्यतामिदं राजनयमुप पृच्यताम् ॥८॥

Word-Meaning: - (उप) (इदम्) (उपपर्चनम्) उपसम्बन्धः (आसु) (गोषु) पृथिवीषु वाक्षु वा (उप) (पृच्यताम्) सम्बध्यताम् (उप) (ऋषभस्य) श्रेष्ठस्य (रेतसि) वीर्ये (उप) (इन्द्र) परमैश्वर्यकारक (तव) (वीर्ये) पराक्रमे ॥८॥
Connotation: - ये राजादयो मनुष्या विद्वांसो भूत्वा सभायां परस्परस्यैकां सम्मतिं कृत्वा विरोधविनाशेनैकतायां प्रयतन्ते तेऽखण्डितसामर्थ्या जायन्त इति ॥८॥ अत्र गवेन्द्रविद्याप्रजाराजधर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ अस्मिन्नध्याय इन्द्रसोमसूर्य्योषाराज्यविश्वेदेवयोधृमित्रत्वजगदीश्वराग्निद्यावापृथिवीराजप्रजामरुच्छिल्पिन्यायेशोपदेशक- वाग्विद्यागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वाध्यायार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां महाविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये चतुर्थाष्टके षष्ठोऽध्यायः पञ्चविंशो वर्गः, षष्ठे मण्डलेऽष्टाविंशं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजे विद्वान बनून सभेत परस्पर एक संमतीने विरोधाचा नाश करून एकतेसाठी प्रयत्न करतात ते अखंड सामर्थ्यवान बनतात. ॥ ८ ॥