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श्रु॒धी न॑ इन्द्र॒ ह्वया॑मसि त्वा म॒हो वाज॑स्य सा॒तौ वा॑वृषा॒णाः। सं यद्विशोऽय॑न्त॒ शूर॑साता उ॒ग्रं नोऽवः॒ पार्ये॒ अह॑न्दाः ॥१॥

English Transliteration

śrudhī na indra hvayāmasi tvā maho vājasya sātau vāvṛṣāṇāḥ | saṁ yad viśo yanta śūrasātā ugraṁ no vaḥ pārye ahan dāḥ ||

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Pad Path

श्रु॒धि। नः॒। इ॒न्द्र॒। ह्वया॑मसि। त्वा॒। म॒हः। वाज॑स्य। सा॒तौ। व॒वृ॒षा॒णाः। सम्। यत्। विशः॑। अय॑न्त। शूर॑ऽसातौ। उ॒ग्रम्। नः॒। अवः॑। पार्ये॑। अह॑न्। दाः॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:26» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब आठ ऋचावाले छब्बीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजाजन परस्पर कैसा बर्ताव करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) राजन् ! (वावृषाणाः) बल को करते हुए (विशः) मनुष्य आदि प्रजा हम लोग (महः) बड़े (वाजस्य) वेग आदि गुणों से युक्त के (सातौ) शूरों का विभाग जिसमें उस संग्राम में (यत्) जिससे (त्वा) आपको (ह्वयामसि) जनावें, जिससे आप (नः) हम लोगों के लिये वचनों को (श्रुधी) सुनिये और जो (शूरसातौ) शूरों का विभाग जिसमें उस संग्राम में (नः) हम लोगों को (सम्, अयन्त) प्राप्त होते हैं, उस (पार्ये) पालन करने योग्य (अहन्) दिन में (उग्रम्) तेजस्वी को (अवः) रक्षण (दाः) दीजिये ॥१॥
Connotation: - राजाओं को यह अतियोग्य है कि जो प्रजा कहे उसको ध्यान से सुनें, जिससे राजा और प्रजाजनों का विरोध न होवे और प्रतिदिन सुख बढ़े ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजा प्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! वावृषाणा विशो वयं महो वाजस्य सातौ यत्त्वा ह्वयामसि तत्त्वं नो वचांसि श्रुधी ये शूरसातौ नः समयन्त तत्र पार्येऽहन्नुग्रमवो दाः ॥१॥

Word-Meaning: - (श्रुधि) शृणु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) राजन् (ह्वयामसि) प्रज्ञापयेम (त्वा) (महः) महतः (वाजस्य) वेगादिगुणयुक्तस्य (सातौ) शूराणां सातिर्विभागो यस्मिंस्तस्मिन्त्संग्रामे (वावृषाणाः) वृषं बलं कुर्वाणाः। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदीर्घः। (सम्) (यत्) यतः (विशः) मनुष्यादिप्रजाः (अयन्त) प्राप्नुवन्ति (शूरसातौ) शूराणां सातिर्विभागो यस्मिंस्तस्मिन्त्संग्रामे (उग्रम्) तेजस्विनम् (नः) अस्मभ्यम् (अवः) रक्षणम् (पार्ये) पालयितव्ये (अहन्) दिने (दाः) देहि ॥१॥
Connotation: - राज्ञामिदमतिसमुचितमस्ति यत्प्रजा ब्रूयात् तद्ध्यानेन शृणुयुः। यतो राजप्रजाजनानां विरोधो न स्यात् प्रत्यहं सुखं वर्धेत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, परीक्षक, श्रेष्ठ, राजा व प्रजेच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - राजाने प्रजेचे म्हणणे लक्षपूर्वक ऐकावे. त्यामुळे राजा व प्रजा यांचा विरोध न होता प्रत्येक दिवशी सुख वाढते. ॥ १ ॥