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आभिः॒ स्पृधो॑ मिथ॒तीररि॑षण्यन्न॒मित्र॑स्य व्यथया म॒न्युमि॑न्द्र। आभि॒र्विश्वा॑ अभि॒युजो॒ विषू॑ची॒रार्या॑य॒ विशोऽव॑ तारी॒र्दासीः॑ ॥२॥

English Transliteration

ābhiḥ spṛdho mithatīr ariṣaṇyann amitrasya vyathayā manyum indra | ābhir viśvā abhiyujo viṣūcīr āryāya viśo va tārīr dāsīḥ ||

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Pad Path

आभिः॑। स्पृधः॑। मि॒थ॒तीः। अरि॑षण्यन्। अ॒मित्र॑स्य। व्य॒थ॒य॒। म॒न्युम्। इ॒न्द्र॒। आभिः॑। विश्वाः॑। अ॒भि॒ऽयुजः॑। विषू॑चीः। आर्या॑य। विशः॑। अव॑। ता॒रीः॒। दासीः॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:25» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सेना का स्वामी क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सेना के स्वामी आप (आभिः) इन रक्षाओं वा सेनाओं से (मिथतीः) शत्रुओं की सेनाओं का नाश करते हुए (स्पृधः) संग्रामों की (अरिषण्यन्) नहीं हिंसा करते हुए (अमित्रस्य) शत्रु की सेनाओं को (मन्युम्) क्रोध करके (व्यथया) पीड़ा दीजिये और (आभिः) इन रक्षा और सेनाओं से (आर्याय) उत्तम जन के लिये (विश्वाः) सम्पूर्ण (अभियुजः) अभियुक्त होने और (विषूचीः) व्याप्त होनेवाली (दासीः) सेविकाओं को और (विशः) प्रजाओं को (अव, तारीः) दुःख से पार करिये ॥२॥
Connotation: - वे ही सेना के स्वामी सत्कार करने योग्य हैं, जो अपनी सेना को उत्तम प्रकार शिक्षा दें तथा उत्तम प्रकार रक्षा कर और सत्कार करके युद्धविद्या में चतुर करके डाकुओं और अन्यायकारी शत्रुओं को निवारण करके अच्छी प्रजाओं की निरन्तर रक्षा करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सेनेशः किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र सेनेश ! त्वमाभिर्मिथतीः स्पृधोऽरिषण्यन्नमित्रस्य सेना मन्युं कृत्वा व्यथया। आभिरार्याय विश्वा अभियुजो विषूचीर्दासीर्विशोऽवतारीः ॥२॥

Word-Meaning: - (आभिः) रक्षाभिस्सेनाभिर्वा (स्पृधः) सङ्ग्रामान् (मिथतीः) शत्रुसेनाः हिंसन्तीः (अरिषण्यन्) अहिंसन् (अमित्रस्य) शत्रोः (व्यथया) पीडय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (मन्युम्) क्रोधम् (इन्द्र) सेनाध्यक्ष (आभिः) रक्षाभिः सेनाभिर्वा (विश्वाः) समग्राः (अभियुजः) या अभियुञ्जते ताः (विषूचीः) व्याप्नुवतीः (आर्याय) उत्तमाय जनाय (विशः) प्रजाः (अव) (तारीः) दुःखात्तारय (दासीः) सेविकाः ॥२॥
Connotation: - त एव सेनाध्यक्षाः सत्कर्तव्या ये स्वसेनाः सुशिक्ष्य संरक्ष्य सत्कृत्य युद्धविद्यायां कुशलीकृत्य दस्यूनन्यायकारिणः शत्रूँश्च निवार्य भद्राः प्रजाः सततं रक्षेयुः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे आपल्या सेनेला उत्तम प्रकारे प्रशिक्षित करतात व उत्तम प्रकारे रक्षण करून सत्कार करतात, डाकू व अन्यायी शत्रूंचे निवारण करून चांगल्या लोकांचे सतत रक्षण करतात तेच सेनाध्यक्ष सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ २ ॥