न वी॒ळवे॒ नम॑ते॒ न स्थि॒राय॒ न शर्ध॑ते॒ दस्यु॑जूताय स्त॒वान्। अज्रा॒ इन्द्र॑स्य गि॒रय॑श्चिदृ॒ष्वा ग॑म्भी॒रे चि॑द्भवति गा॒धम॑स्मै ॥८॥
na vīḻave namate na sthirāya na śardhate dasyujūtāya stavān | ajrā indrasya girayaś cid ṛṣvā gambhīre cid bhavati gādham asmai ||
न। वी॒ळवे॑। नम॑ते। न। स्थि॒राय॑। न। शर्ध॑ते। दस्यु॑ऽजूताय। स्त॒वान्। अज्राः॑। इन्द्र॑स्य। गि॒रयः॑। चित्। ऋ॒ष्वाः। ग॒म्भी॒रे। चि॒त्। भ॒व॒ति॒। गा॒धम्। अ॒स्मै॒ ॥८॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे विद्वांसो ! यो दस्युजूताय वीळवे न नमते स्थिराय न नमते शर्धते न स्तवान् यस्यचिदिन्द्रस्य ऋष्वा अज्रा गिरयश्चिदस्मै गाधं गम्भीरे चिद् भवति तं प्रशंसत ॥८॥
MATA SAVITA JOSHI
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