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अस्मै॑ व॒यं यद्वा॒वान॒ तद्वि॑विष्म॒ इन्द्रा॑य॒ यो नः॑ प्र॒दिवो॒ अप॒स्कः। सु॒ते सोमे॑ स्तु॒मसि॒ शंस॑दु॒क्थेन्द्रा॑य॒ ब्रह्म॒ वर्ध॑नं॒ यथास॑त् ॥५॥

English Transliteration

asmai vayaṁ yad vāvāna tad viviṣma indrāya yo naḥ pradivo apas kaḥ | sute some stumasi śaṁsad ukthendrāya brahma vardhanaṁ yathāsat ||

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Pad Path

अस्मै॑। व॒यम्। यत्। व॒वान॑। तत्। वि॒वि॒ष्मः॒। इन्द्रा॑य। यः। नः॒। प्र॒ऽदिवः। अपः॑। क॒रिति॑ कः। सु॒ते। सोमे॑। स्तु॒मसि॑। शंस॑त्। उ॒क्था। इन्द्रा॑य। ब्रह्म॑। वर्ध॑नम्। यथा॑। अस॑त् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:23» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को परस्पर कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (प्रदिवः) अत्यन्तपन से कामना करते हुओं (नः) हमलोगों और (अपः) कर्म को (कः) करता है और (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्ययुक्त जन के लिये (उक्था) प्रशंसा करने योग्य कर्मों को (शंसत्) कहे और (यथा) जैसे (ब्रह्म) धन (वर्धनम्) बढ़ता है जिससे वह (असत्) होवे और (अस्मै) पूर्व मन्त्र में कहे हुए (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (वयम्) हम लोग (यत्) जिसको (विविष्मः) व्याप्त होते हैं (तत्) उसका जो (वावान) उत्तम प्रकार सेवन करता है, वैसे उसकी (सुते) उत्पन्न किये गये (सोम) ऐश्वर्य में हम लोग (स्तुमसि) स्तुति करते हैं ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो धन के सदृश सब के बढ़ानेवाले हैं, वे अत्यन्त ऐश्वर्य को प्राप्त होकर प्रयत्न करते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः प्रदिवो नोऽपस्क इन्द्रायोक्था शंसद्यथा ब्रह्म वर्धनमसदस्मा इन्द्राय वयं यद्विविष्मस्तद्यो वावान तथा तं सुते सोमे वयं स्तुमसि ॥५॥

Word-Meaning: - (अस्मै) पूर्वमन्त्रोक्ताय (वयम्) (यत्) (वावान) वनते। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम् (तत्) (विविष्मः) व्याप्नुमः (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (यः) (नः) अस्मान् (प्रदिवः) प्रकर्षेण कामयमानान् (अपः) कर्म (कः) करोति (सुते) निष्पादिते (सोमे) ऐश्वर्ये (स्तुमसि) स्तुमः (शंसत्) शंसेत् (उक्था) प्रशंसनीयानि कर्माणि (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (ब्रह्म) धनम् (वर्धनम्) वर्धते येन (यथा) (असत्) भवेत् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये धनवत्सर्ववर्धकाः सन्ति ते परमैश्वर्यं लब्ध्वा प्रयतन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे धनाप्रमाणे सर्वांची वृद्धी करतात ते अत्यंत ऐश्वर्य प्राप्त करून प्रयत्न करतात. ॥ ५ ॥