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ए॒वेदिन्द्रः॑ सु॒ते अ॑स्तावि॒ सोमे॑ भ॒रद्वा॑जेषु॒ क्षय॒दिन्म॒घोनः॑। अस॒द्यथा॑ जरि॒त्र उ॒त सू॒रिरिन्द्रो॑ रा॒यो वि॒श्ववा॑रस्य दा॒ता ॥१०॥

English Transliteration

eved indraḥ sute astāvi some bharadvājeṣu kṣayad in maghonaḥ | asad yathā jaritra uta sūrir indro rāyo viśvavārasya dātā ||

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Pad Path

ए॒व। इत्। इन्द्रः॑। सु॒ते। अ॒स्ता॒वि॒। सोमे॑। भ॒रत्ऽवा॑जेषु। क्षय॑त्। इत्। म॒घोनः॑। अस॑त्। यथा॑। ज॒रि॒त्रे। उ॒त। सू॒रिः। इन्द्रः॑। रा॒यः। वि॒श्वऽवा॑रस्य। दा॒ता ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:23» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो (यथा) जैसे (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यवाला जन (सुते) उत्पन्न हुए इस संसार में (सोमे) ऐश्वर्य में (इत्) निश्चय (भरद्वाजेषु) विज्ञान को धारण किए हुओं में (अस्तावि) स्तुति किया जाता है और जैसे (सूरिः) विद्वान् और (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त जन (जरित्रे) स्तुति करनेवाले जन के लिये (विश्ववारस्य) सम्पूर्ण स्वीकार जिसमें उस (रायः) धन का (दाता) देनेवाला (उत) निश्चय से (क्षयत्) निवास करे और (इत्) निश्चय कर (मघोनः) धन से युक्त जनों की रक्षा करता हुआ हो वह (एव) ही उस प्रकार का सुखी (असत्) होवे ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य इस संसार में धर्मयुक्त कर्म्म करते हैं, वे सर्वदा स्तुति किये जाते हैं, जैसा देना प्रियकारक होता है, वैसा लेना नहीं प्रियकारक होता है ॥१०॥ इस सूक्त में इन्द्र, विद्वान्, राजा और प्रजा के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ऋग्वेदभाष्य के छठे मण्डल में दूसरा अनुवाक, तेईसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथेन्द्रः सुते सोम इद्भरद्वाजेष्वस्तावि यथा सूरिरिन्द्रो जरित्रे विश्ववारस्य रायो दातोत क्षयदिन्मघोनो रक्षमाणोऽस्ति स इदेव तथा सुख्यसत् ॥१०॥

Word-Meaning: - (एव) (इत्) अपि (इन्द्रः) परमैश्वर्यः (सुते) निष्पन्नेऽस्मिञ्जगति (अस्तावि) स्तूयते (सोमे) ऐश्वर्ये (भरद्वाजेषु) धृतविज्ञानेषु (क्षयत्) निवसेत् (इत्) अपि (मघोनः) धनाढ्यान् (असत्) भवेत् (यथा) (जरित्रे) स्तावकाय (उत) अपि (सूरिः) विद्वान् (इन्द्रः) (रायः) धनस्य (विश्ववारस्य) विश्वे सर्वे वारा स्वीकारा यस्मिंस्तस्य (दाता) ॥१०॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अस्मिञ्जगति धर्म्याणि कर्माणि कुर्वन्ति ते सर्वदा स्तूयन्ते यथा दानं प्रियकारकं भवति तथा ह्यादानं न भवतीति ॥१०॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदभाष्ये षष्ठे मण्डले द्वितीयोऽनुवाकस्त्रयोविंशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे धर्मयुक्त कर्म करतात त्यांची स्तुती होते. जसे दान देणे प्रिय असते तसे दान घेणे प्रिय नसते. ॥ १० ॥