तं वो॑ धि॒या नव्य॑स्या॒ शवि॑ष्ठं प्र॒त्नं प्र॑त्न॒वत्प॑रितंस॒यध्यै॑। स नो॑ वक्षदनिमा॒नः सु॒वह्मेन्द्रो॒ विश्वा॒न्यति॑ दु॒र्गहा॑णि ॥७॥
taṁ vo dhiyā navyasyā śaviṣṭham pratnam pratnavat paritaṁsayadhyai | sa no vakṣad animānaḥ suvahmendro viśvāny ati durgahāṇi ||
तम्। वः॒। धि॒या। नव्य॑स्या। शवि॑ष्ठम्। प्र॒त्नम्। प्र॒त्न॒ऽवत्। प॒रि॒ऽतं॒स॒यध्यै॑। सः। नः॒। व॒क्ष॒त्। अ॒नि॒ऽमा॒नः। सु॒ऽवह्मा॑। इन्द्रः॑। विश्वा॑नि। अति॑। दुः॒ऽगहा॑णि ॥७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को किसका नित्य ध्यान करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः को नित्यं ध्येय इत्याह ॥
हे मनुष्या ! योऽनिमानः सुवह्मेन्द्रो जगदीश्वरो नव्यस्या धिया वो नोऽस्मान् विश्वानि दुर्गहाणि परितंसयध्यै अति वक्षत्तं शविष्ठं प्रत्नं प्रत्नवन्मत्वा वयं सेवेमहि स चाऽस्माकं गुरुः स्यात् ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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