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स नो॑ नि॒युद्भिः॑ पुरुहूत वेधो वि॒श्ववा॑राभि॒रा ग॑हि प्रयज्यो। न या अदे॑वो॒ वर॑ते॒ न दे॒व आभि॑र्याहि॒ तूय॒मा म॑द्र्य॒द्रिक् ॥११॥

English Transliteration

sa no niyudbhiḥ puruhūta vedho viśvavārābhir ā gahi prayajyo | na yā adevo varate na deva ābhir yāhi tūyam ā madryadrik ||

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Pad Path

सः। नः॒। नि॒युत्ऽभिः॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। वे॒धः॒। वि॒श्वऽवा॑राभिः। आ। ग॒हि॒। प्र॒य॒ज्यो॒ इति॑ प्रऽयज्यो। न। याः। अदे॑वः। वर॑ते। न। दे॒वः। आ। आ॒भिः॒। या॒हि॒। तूय॑म्। आ। म॒द्र्य॒द्रिक् ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:22» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:14» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (प्रयज्यो) अत्यन्त यज्ञ करनेवाले (पुरुहूत) बहुतों से आदर किये गये (वेधः) बुद्धियुक्त (सः) वह आप (देवः) विद्वान् के (न) समान (विश्ववाराभिः) सब से स्वीकार करने योग्य गमनों से और (आभिः) इन (नियुद्भिः) निश्चित गमनवाले घोड़ों से जैसे वैसे (नः) हम लोगों को (आ, गहि) प्राप्त हूजिये और (याः) जिन रीतियों को (अदेवः) विद्वान् जनसे भिन्न (न) नहीं (आ, वरते) अच्छे प्रकार स्वीकार करता है (मद्र्यद्रिक्) मेरे सन्मुख हुए आप (तूयम्) शीघ्र (आ, याहि) प्राप्त हूजिये ॥११॥
Connotation: - जो रीति विद्वानों की है उसको अविद्वान् जन नहीं स्वीकार करते हैं, इससे विद्वानों और अविद्वानों का पृथक् प्रस्थान है, यह जानना चाहिये ॥११॥ इस सूक्त में इन्द्र, विद्वान्, ईश्वर, राजा और प्रजा के धर्म का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बाईसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे प्रयज्यो पुरुहूत वेधः ! स त्वं देवो न विश्ववाराभिराभिर्नियुद्भिर्न आ गहि या रीतिरदेवो नाऽऽवरते मद्र्यद्रिक् सँस्त्वं तूयमायाहि ॥११॥

Word-Meaning: - (सः) (नः) अस्मान् (नियुद्भिः) निश्चिद्गतिभिरश्वैरिव (पुरुहूत) बहुभिः पूजित (वेधः) मेधाविन् (विश्ववाराभिः) सर्वैः स्वीकरणीयाभिर्गतिभिः (आ) (गहि) आगच्छ (प्रयज्यो) प्रकर्षेण यज्ञकर्त्तः (न) निषेधे (याः) (अदेवः) अविद्वान् (वरते) स्वीकरोति (न) (देवः) विद्वान् (आ) (आभिः) (याहि) (तूयम्) तूर्णम् (आ) (मद्र्यद्रिक्) मदभिमुखः ॥११॥
Connotation: - या रीतिर्विदुषां भवति तामविद्वांसो न स्वीकुर्वन्ति तस्माद्विदुषामविदुषां च पृथक् प्रस्थानमस्तीति वेद्यम् ॥११॥ अत्रेन्द्रविद्वदीश्वरराजप्रजाधर्मवर्णनादेतर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वाविंशतितमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांच्या मार्गाने अविद्वान लोक चालत नाहीत. त्यामुळे विद्वान व अविद्वानांचा मार्ग वेगवेगळा आहे हे जाणले पाहिजे. ॥ ११ ॥