दि॒वो न तुभ्य॒मन्वि॑न्द्र स॒त्रासु॒र्यं॑ दे॒वेभि॑र्धायि॒ विश्व॑म्। अहिं॒ यद्वृ॒त्रम॒पो व॑व्रि॒वांसं॒ हन्नृ॑जीषि॒न्विष्णु॑ना सचा॒नः ॥२॥
divo na tubhyam anv indra satrāsuryaṁ devebhir dhāyi viśvam | ahiṁ yad vṛtram apo vavrivāṁsaṁ hann ṛjīṣin viṣṇunā sacānaḥ ||
दि॒वः। न। तुभ्य॑म्। अनु॑। इ॒न्द्र॒। स॒त्रा। अ॒सु॒र्य॑म्। दे॒वेभिः॑। धा॒यि॒। विश्व॑म्। अहि॑म्। यत्। वृ॒त्रम्। अ॒पः। व॒व्रि॒ऽवांस॑म्। हन्। ऋ॒जी॒षि॒न्। विष्णु॑ना। स॒चा॒नः ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे ऋजीषिन्निन्द्र ! यथा सूर्य्यो विष्णुना सचानो यद्यमपो वव्रिवांसं वृत्रमहिं हंस्तथा देवेभिस्तुभ्यं सत्रा दिवो न विश्वमसुर्यमनु धायि ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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