द्यौर्न य इ॑न्द्रा॒भि भूमा॒र्यस्त॒स्थौ र॒यिः शव॑सा पृ॒त्सु जना॑न्। तं नः॑ स॒हस्र॑भरमुर्वरा॒सां द॒द्धि सू॑नो सहसो वृत्र॒तुर॑म् ॥१॥
dyaur na ya indrābhi bhūmāryas tasthau rayiḥ śavasā pṛtsu janān | taṁ naḥ sahasrabharam urvarāsāṁ daddhi sūno sahaso vṛtraturam ||
द्यौः। न। यः। इ॒न्द्र॒। अ॒भि। भूम॑। अ॒र्यः। त॒स्थौ। र॒यिः। शव॑सा। पृ॒त्ऽसु। जना॑न्। तम्। नः॒। स॒हस्र॑ऽभरम्। उ॒र्व॒रा॒ऽसाम्। द॒द्धि। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। वृ॒त्र॒ऽतुर॑म् ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब तेरह ऋचावाले बीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब मनुष्यों को किसकी इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्यैः किमेष्टव्यमित्याह ॥
हे सहसः सूनो इन्द्र ! यो द्यौर्न रयिरस्त्यस्यार्यः शवसा पृत्सु जनानभि तस्थौ तं सहस्रभरं वृत्रतुरमुवर्रासां मध्ये श्रेष्ठं विजयं नो दद्धि येन वयं श्रीमन्तो भूम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात इंद्र, विद्वान, राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.