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त्वां हि ष्मा॑ चर्ष॒णयो॑ य॒ज्ञेभि॑र्गी॒र्भिरीळ॑ते। त्वां वा॒जी या॑त्यवृ॒को र॑ज॒स्तूर्वि॒श्वच॑र्षणिः ॥२॥

English Transliteration

tvāṁ hi ṣmā carṣaṇayo yajñebhir gīrbhir īḻate | tvāṁ vājī yāty avṛko rajastūr viśvacarṣaṇiḥ ||

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Pad Path

त्वाम्। हि। स्म॒। च॒र्ष॒णयः॑। य॒ज्ञेभिः॑। गीः॒ऽभिः। ईळ॑ते। त्वाम्। वा॒जी। या॒ति॒। अ॒वृ॒कः। र॒जः॒ऽतूः। वि॒श्वऽच॑र्षणिः ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:2» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वानों को इस संसार में कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जो (चर्षणयः) मनुष्य (यज्ञेभिः) अध्ययन-अध्यापन आदिकों और (गीर्भिः) वाणियों से (त्वाम्) आपकी (हि) निश्चित (ईळते) स्तुति करते (स्मा) ही हैं (रजस्तूः) लोकों का बढ़ानेवाला (विश्वचर्षणिः) सम्पूर्ण विचारशील मनुष्य जिसके वह (अवृकः) चोर आदिकों के सङ्ग से रहित (वाजी) वेग से युक्त हुआ (त्वाम्) आपको (याति) प्राप्त होता है ॥२॥
Connotation: - जो मनुष्य जिस विद्वान् का सेवन करते हैं, वह उनके लिये विद्या देवे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वद्भिरत्र कथं वर्त्तिततव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! ये चर्षणयो यज्ञेभिर्गीर्भिस्त्वां हीळते स्मा रजस्तूर्विश्वचर्षणिरवृको वाजी त्वां याति ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (हि) यतः (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (चर्षणयः) मनुष्याः (यज्ञेभिः) अध्ययनाध्यापनादिभिः (गीर्भिः) वाग्भिः (ईळते) स्तुवन्ति (त्वाम्) (वाजी) वेगवान् (याति) (अवृकः) चोरादिसङ्गरहितः (रजस्तूः) यो रजांसि लोकान् वर्धयति (विश्वचर्षणिः) विश्वे चर्षणयो मननशीला मनुष्या यस्य सः ॥२॥
Connotation: - ये मनुष्या यं विद्वांसं सेवन्ते स तान् विद्यां प्रदद्यात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे ज्या विद्वानाचा स्वीकार करतात त्यांना त्याने विद्या द्यावी. ॥ २ ॥