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पृ॒थू क॒रस्ना॑ बहु॒ला गभ॑स्ती अस्म॒द्र्य१॒॑क्सं मि॑मीहि॒ श्रवां॑सि। यू॒थेव॑ प॒श्वः प॑शु॒पा दमू॑ना अ॒स्माँ इ॑न्द्रा॒भ्या व॑वृत्स्वा॒जौ ॥

English Transliteration

pṛthū karasnā bahulā gabhastī asmadryak sam mimīhi śravāṁsi | yūtheva paśvaḥ paśupā damūnā asmām̐ indrābhy ā vavṛtsvājau ||

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Pad Path

पृ॒थू इति॑। क॒रस्ना॑। ब॒हु॒ला। गभ॑स्ती॒ इति॑। अ॒स्म॒द्र्य॑क्। सम्। मि॒मी॒हि॒। श्रवां॑सि। यू॒थाऽइ॑व। प॒श्वः। प॒शु॒ऽपाः। दमू॑नाः। अ॒स्मान्। इ॒न्द्र॒। अ॒भि। आ। व॒वृ॒त्स्व॒। आ॒जौ ॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:19» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनवाले और न्याय के ईश ! जो आपके (पृथू) विस्तीर्ण (करस्ना) जो करनेवालों को शुद्ध करनेवाले (बहुला) जिन से बहुतों को ग्रहण करते वे (गभस्ती) दोनों हाथ वर्त्तमान हैं उन दोनों से (पशुपाः) पशुओं के रखनेवाले (पश्वः) पशु के (यूथेव) समूह जैसे वैसे (अस्मद्र्यक्) हम लोगों की सेवा करनेवाले होते हुए (श्रवांसि) अन्नों वा श्रवणों का (सम्, मिमीहि) उत्तम प्रकार ग्रहण करिये और (दमूनाः) इन्द्रियों का निग्रह करनेवाले हुए (आजौ) सङ्ग्राम में (अस्मान्) हम लोगों के (अभि) चारों ओर से (आ, ववृत्स्व) अच्छे प्रकार वर्ताव करिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वे ही लक्ष्मीवान् होते हैं, जो आलस्य का त्याग करके सदा सत्कर्म के लिये प्रयत्न करते हैं और जैसे पशुओं के पालनेवाले पशुओं का पालन करके समृद्ध अर्थात् धनवान् होते हैं, वैसे ही पुरुषार्थी जन दारिद्र्य का विनाश करके धन के स्वामी होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यौ ते पृथू करस्ना बहुला गभस्ती वर्तेते ताभ्यां पशुपाः पश्वो यूथेवाऽस्मद्र्यक् सञ्छवांसि सं मिमीहि। दमूनाः सन्नाजावस्मानभ्याऽऽववृत्स्व ॥३॥

Word-Meaning: - (पृथू) विस्तीर्णौ (करस्ना) यौ करान् कर्तॄन् स्नापयतश्शोधयतस्तौ (बहुला) याभ्यां बहूँल्लाति तौ (गभस्ती) हस्तौ। गभस्ती इति बाहुनाम। (निघं०२.४) (अस्मद्र्यक्) योऽस्मानञ्चति सः (सम्) (मिमीहि) मन्यस्व (श्रवांसि) अन्नानि श्रवणानि वा (यूथेव) समूह इव (पश्वः) पशोः (पशुपाः) यः पशून् पाति (दमूनाः) दमनशीलः (अस्मान्) (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद न्यायेश (अभि) (आ) (ववृत्स्व) अभ्यावर्तस्व (आजौ) संग्रामे ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। त एव श्रीमन्तो य आलस्यं विहाय सदा सत्कर्मणे प्रयतन्ते यथा पशुपालाः पशून् पालयित्वा समृद्धा भवन्ति तथैव पुरुषार्थिनो जना दारिद्र्यं विनाश्य श्रीपतयो जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे आळस सोडून सदैव सत्कर्मासाठी प्रयत्नशील असतात तेच श्रीमंत होतात व जसे पशुपालन करणारे पशूंचे पालन करून समृद्ध होतात तसेच पुरुषार्थी लोक दारिद्र्याचा नाश करून धनवान होतात. ॥ ३ ॥