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व॒यं त॑ ए॒भिः पु॑रुहूत स॒ख्यैः शत्रोः॑शत्रो॒रुत्त॑र॒ इत्स्या॑म। घ्नन्तो॑ वृ॒त्राण्यु॒भया॑नि शूर रा॒या म॑देम बृह॒ता त्वोताः॑ ॥१३॥

English Transliteration

vayaṁ ta ebhiḥ puruhūta sakhyaiḥ śatroḥ-śatror uttara it syāma | ghnanto vṛtrāṇy ubhayāni śūra rāyā madema bṛhatā tvotāḥ ||

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Pad Path

व॒यम्। ते॒। ए॒भिः। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। स॒ख्यैः। शत्रोः॑ऽशत्रोः। उत्ऽत॑रे। इत्। स्या॒म॒। घ्नन्तः॑। वृ॒त्राणि॑। उ॒भया॑नि। शू॒र॒। रा॒या। म॒दे॒म॒। बृ॒ह॒ता। त्वाऽऊ॑ताः ॥१३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:19» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:8 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसित (शूर) वीर राजन् ! (वयम्) हम लोग (ते) आपके (एभिः) इन वर्त्तमान, पहिले कहे गये और उत्तरों से प्रतिपादित (सख्यैः) मित्र के कर्मों से (शत्रोःशत्रोः) शत्रु-शत्रु की सेनाओं का (घ्नन्तः) नाश करते हुए (उत्तरे) विजय के अनन्तर समय में (स्याम) प्रकट होवें और (उभयानि) राजा और प्रजाजन में वर्त्तमान (वृत्राणि) धनों को प्राप्त होकर आपकी (बृहता) बड़ी (राया) राज्यलक्ष्मी से तथा (त्वोताः) आप से पालना किये हुए (इत्) ही (मदेम) आनन्द को प्राप्त होवें ॥१३॥
Connotation: - जो राजा और राजप्रजाजन मित्र के सदृश होवें तो सम्पूर्ण शत्रुओं को जीत कर बड़ी राज्यलक्ष्मी से प्रकाशित होवें ॥१३॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा और प्रजाजनों के कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उन्नीसवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे पुरुहूत शूर राजन् ! वयं त एभिः सख्यैः शत्रोःशत्रोः सेना घ्नन्त उत्तरे स्यामोभयानि वृत्राणि लब्ध्वा तव बृहता राया त्वोताः सन्त इन्मदेम ॥१३॥

Word-Meaning: - (वयम्) (ते) तव (एभिः) वर्तमानैः पूर्वोक्तैरुत्तरप्रतिपादितैः (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित (सख्यैः) मित्रकर्मभिः (शत्रोःशत्रोः) (उत्तरे) विजयानन्तरसमये (इत्) एव (स्याम) (घ्नन्तः) (वृत्राणि) धनानि (उभयानि) राजप्रजास्थानि (शूर) (राया) राज्यश्रिया (मदेम) आनन्देम (बृहता) महता (त्वोताः) त्वया पालिताः ॥१३॥
Connotation: - यदि राजा राजप्रजाजनाश्च सुहृद्वत् स्युस्तर्हि सर्वाञ्छत्रून् विजित्य महत्या राजश्रिया प्रकाशेरन्निति ॥१३॥ अत्रेन्द्रराजप्रजाजनकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनविंशं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर राजा व प्रजा मित्राप्रमाणे वागले तर सर्व शत्रूंना जिंकून राज्यलक्ष्मी प्राप्त होते. ॥ १३ ॥