अ॒ग्निस्ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ यास॒द् विश्वं॒ न्य१॒॑त्रिण॑म्। अ॒ग्निर्नो॑ वनते र॒यिम् ॥२८॥
agnis tigmena śociṣā yāsad viśvaṁ ny atriṇam | agnir no vanate rayim ||
अ॒ग्निः। ति॒ग्मेन॑। शो॒चिषा॑। यास॑त्। विश्व॑म्। नि। अ॒त्रिण॑म्। अ॒ग्निः। नः॒। व॒न॒ते॒। र॒यिम् ॥२८॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे राजन् ! यथाऽग्निस्तिग्मेन शोचिषा प्राप्तं वस्तु वहति तथा यो विश्वमत्रिणं नि यासत्तथा च योऽग्निर्नो रयिं वनते तमध्यक्षं कुरु ॥२८॥
MATA SAVITA JOSHI
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