वस्वी॑ ते अग्ने॒ संदृ॑ष्टिरिषय॒ते मर्त्या॑य। ऊर्जो॑ नपाद॒मृत॑स्य ॥२५॥
vasvī te agne saṁdṛṣṭir iṣayate martyāya | ūrjo napād amṛtasya ||
वस्वी॑। ते॒। अ॒ग्ने॒। सम्ऽदृ॑ष्टिः। इ॒ष॒ऽय॒ते। मर्त्या॑य। ऊर्जः॑। न॒पा॒त्। अ॒मृत॑स्य ॥२५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
उत्तम जन का व्यवहार वा सङ्ग निष्फल नहीं होता, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
उत्तमस्य व्यवहारः सङ्गो वा निष्फलो न भवतीत्याह ॥
हे अग्ने ! ते वस्वी सन्दृष्टिरिषयते मर्त्यायाऽमृतस्योर्जो नपाद्भवति ॥२५॥
MATA SAVITA JOSHI
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