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पा॒व॒कया॒ यश्चि॒तय॑न्त्या कृ॒पा क्षाम॑न्रुरु॒च उ॒षसो॒ न भा॒नुना॑। तूर्व॒न्न याम॒न्नेत॑शस्य॒ नू रण॒ आ यो घृ॒णे न त॑तृषा॒णो अ॒जरः॑ ॥५॥

English Transliteration

pāvakayā yaś citayantyā kṛpā kṣāman ruruca uṣaso na bhānunā | tūrvan na yāmann etaśasya nū raṇa ā yo ghṛṇe na tatṛṣāṇo ajaraḥ ||

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Pad Path

पा॒व॒कया॑। यः। चि॒तय॑न्त्या। कृ॒पा। क्षाम॑न्। रु॒रु॒चे। उ॒षसः॑। न। भा॒नुना॑। तूर्व॑न्। न। याम॑न्। एत॑शस्य। नु। रणे॑। यः। घृ॒णे। न। त॒तृषा॒णः। अ॒जरः॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:15» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या प्रकाशित करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (भानुना) किरण से (उषसः) प्रभातवेला (न) जैसे वैसे (पावकया) अग्नि की क्रिया से और (चितयन्त्या) जनाती हुई (कृपा) कृपा से (क्षामन्) पृथिवी में (रुरुचे) प्रकाशित किया जाता है (घृणे) प्रदीप्त में (न) जैसे वैसे (रणे) संग्राम में (ततृषाणः) पिपासा से व्याकुल (अजरः) जरा से रहित (यः) जो (यामन्) चलते हैं जिसमें उस मार्ग में (एतशस्य) घोड़े का चलानेवाला (तूर्वन्) हिंसन करता हुआ (न) जैसे वैसे (नू) शीघ्र (आ) प्रकाशित होता है, वह सेवा करने योग्य है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य के किरण प्रातःकाल को प्रकाशित करते हैं, वैसे ही विद्वान् जन सब के अन्तः करणों को प्रकाशित करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं प्रकाशनीयमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो भानुनोषसो न पावकया चितयन्त्या कृपा क्षामन् रुरुचे घृणे न रणे ततृषाणोऽजरो यो यामन्नेतशस्य प्रेरकस्तूर्वन्न न्वाऽऽरुरुचे सः सेवनीयोऽस्ति ॥५॥

Word-Meaning: - (पावकया) पावकस्य क्रियया (यः) (चितयन्त्या) ज्ञापयन्त्या (कृपा) कृपया (क्षामन्) पृथिव्याम् (रुरुचे) प्रदीप्यते (उषसः) प्रभातवेला (न) इव (भानुना) किरणेन (तूर्वन्) हिंसन् (न) इव (यामन्) यान्ति यस्मिंस्तस्मिन्मार्गे (एतशस्य) अश्वस्य (नू) सद्यः (रणे) संग्रामे (आ) (यः) (घृणे) प्रदीप्ते (न) इव (ततृषाणः) तृषातुरः (अजरः) जरारहितः ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यकिरणा उषसं प्रकाशन्ते तथैव विद्वांसः सर्वान्तःकरणानि प्रकाशयेयुः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशी सूर्यकिरणे प्रातःकाल प्रकाशित करतात तसेच विद्वान लोकांनी सर्वांच्या अंतःकरणांना प्रकाशित करावे. ॥ ५ ॥