इ॒ममू॒ षु वो॒ अति॑थिमुष॒र्बुधं॒ विश्वा॑सां वि॒शां पति॑मृञ्जसे गि॒रा। वेतीद्दि॒वो ज॒नुषा॒ कच्चि॒दा शुचि॒र्ज्योक्चि॑दत्ति॒ गर्भो॒ यदच्यु॑तम् ॥१॥
imam ū ṣu vo atithim uṣarbudhaṁ viśvāsāṁ viśām patim ṛñjase girā | vetīd divo januṣā kac cid ā śucir jyok cid atti garbho yad acyutam ||
इ॒मम्। ऊँ॒ इति॑। सु। वः॒। अति॑थिम्। उ॒षः॒ऽबुध॑म्। विश्वा॑साम्। वि॒शाम्। पति॑म्। ऋ॒ञ्ज॒से॒। गि॒रा। वेति॑। इत्। दि॒वः। ज॒नुषा॑। कत्। चि॒त्। आ। शुचिः॑। ज्योक्। चि॒त्। अ॒त्ति॒। गर्भः॑। यत्। अच्यु॑तम् ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब उन्नीस ऋचावाले सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥
हे विद्वन् ! यतस्त्वमिमं विश्वासां विशां पतिमतिथिमुषर्बुधमृञ्जसे गर्भ इव य उ दिवो जनुषा सुवेतीत् कच्चिद्यच्छुचिरच्युतं वस्तु ज्योगत्ति वो गिरा चिदाऽऽजानाति स विद्वान् भवति ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी, विद्वान, ईश्वर व गृहस्थांच्या कार्याचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.