यस्ते॑ सूनो सहसो गी॒र्भिरु॒क्थैर्य॒ज्ञैर्मर्तो॒ निशि॑तिं वे॒द्यान॑ट्। विश्वं॒ स दे॑व॒ प्रति॒ वार॑मग्ने ध॒त्ते धा॒न्यं१॒॑ पत्य॑ते वस॒व्यैः॑ ॥४॥
yas te sūno sahaso gīrbhir ukthair yajñair marto niśitiṁ vedyānaṭ | viśvaṁ sa deva prati vāram agne dhatte dhānyam patyate vasavyaiḥ ||
यः। ते॒। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। गीः॒ऽभिः। उ॒क्थैः। य॒ज्ञैः। मर्तः॑। निऽशि॑तम्। वे॒द्या। आन॑ट्। विश्व॑म्। सः। दे॒व॒। प्रति॑। वार॑म्। अ॒ग्ने॒। ध॒त्ते। धा॒न्यम्। पत्य॑ते। व॒स॒व्यैः॑ ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे सहसस्सूनो देवाग्ने ! ते यो मर्त्तो गीर्भिरुक्थैर्वेद्या निशितिमानड् वसव्यैर्यज्ञैर्विश्वं धान्यं वारं प्रति धत्ते पत्यते स त्वया सङ्गन्तव्यः ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A