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सास्माके॑भिरे॒तरी॒ न शू॒षैर॒ग्निः ष्ट॑वे॒ दम॒ आ जा॒तवे॑दाः। द्र्व॑न्नो व॒न्वन् क्रत्वा॒ नार्वो॒स्रः पि॒तेव॑ जार॒यायि॑ य॒ज्ञैः ॥४॥

English Transliteration

sāsmākebhir etarī na śūṣair agniḥ ṣṭave dama ā jātavedāḥ | drvanno vanvan kratvā nārvosraḥ piteva jārayāyi yajñaiḥ ||

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Pad Path

सः। अ॒स्माके॑भिः। ए॒तरि॑। न। शू॒षैः। अ॒ग्निः। स्त॒वे॒। दमे॑। आ। जा॒तऽवे॑दाः। द्रुऽअ॑न्नः। व॒न्वन्। क्रत्वा॑। न। अर्वा॑। उ॒स्रः। पि॒ताऽइ॑व। जा॒र॒यायि॑। य॒ज्ञैः ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:12» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अस्माकेभिः) हम लोगों के साथ (द्र्वन्नः) द्रवीभूत अन्न जिससे वह (जारयायि) वृद्धावस्था को प्राप्त होने का स्वभाव जिसका उस शरीर का (वन्वन्) सेवन करता हुआ (पितेव) जैसे पिता, वैसे (अर्वा) घोड़ा (न) जैसे वैसे (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म से (उस्रः) गौओं का सेवन करता है, वैसे (यज्ञैः) विद्वानों की सेवा आदि (शूषैः) बल आदिकों के साथ (अग्निः) अग्नि के समान (जातवेदाः) प्रकट हुओं को जाननेवाला (स्तवे) प्रशंसा करने योग्य (दमे) गृह में और (एतरी) प्राप्त होने योग्य में (न) जैसे वैसे (आ) प्राप्त होता है (सः) वह राजा हम लोगों से सेवन करने योग्य है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे प्रशंसा करने योग्य गृह में सुख से निवास होता है, वैसे ही पिता के सदृश पालन करनेवाले राजा के होने पर प्रजा सुखपूर्वक निवास करती है और जैसे बुद्धि से जितेन्द्रिय होकर और पृथिवी के राज्य को प्राप्त होकर अनाथों की रक्षा करता है, वैसे ही विद्वानों को चाहिये कि सत्य उपदेश से सब जगत् की रक्षा करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽस्माकेभिस्सह द्र्वन्नो जारयायि वन्वन् पितेवाऽर्वा न क्रत्वोस्रः सेवते तथा यज्ञैः शूषैः सहाग्निर्जातवेदाः स्तवे दम एतरी नाऽऽप्नोति सोऽस्माभिस्सेवनीयः ॥४॥

Word-Meaning: - (सः) राजा (अस्माकेभिः) अस्माभिः सह (एतरी) प्राप्तव्ये (न) इव (शूषैः) बलादिभिः (अग्निः) पावक इव (स्तवे) प्रशंसनीये (दमे) गृहे (आ) (जातवेदाः) यो जातानि वेद (द्र्वन्नः) द्रुद्रवीभूतमन्नं यस्मात् (वन्वन्) सम्भजन् (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (न) इव (अर्वा) वाजी (उस्रः) गाः (पितेव) जनक इव (जारयायि) जारं जरावस्थां यातुं शीलं यस्य तच्छरीरम् (यज्ञैः) विद्वत्सेवादिभिः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रशंसनीये गृहे सुखेन निवासो भवति तथैव पितृवत्पालके राजनि प्रजा सुखं वसति यथा प्रज्ञया जितेन्द्रियो भूत्वा पृथिवीराज्यं प्राप्याऽनाथान् रक्षति तथैव विद्वद्भिः सत्योपदेशेन सर्वं जगद्रक्षणीयम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे उत्तम घरात सुखाने निवास करता येतो तसे पित्याप्रमाणे पालन करणारा राजा असेल तर प्रजा सुखाने निवास करते व जसे तो बुद्धिपूर्वक जितेंद्रिय बनून पृथ्वीचे राज्य प्राप्त करून अनाथांचे रक्षण करतो तसेच विद्वानांनी सत्य उपदेशाने सर्व जगाचे रक्षण करावे. ॥ ४ ॥