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वि॒शां क॒विं वि॒श्पतिं॒ शश्व॑तीनां नि॒तोश॑नं वृष॒भं च॑र्षणी॒नाम्। प्रेती॑षणिमि॒षय॑न्तं पाव॒कं राज॑न्तम॒ग्निं य॑ज॒तं र॑यी॒णाम् ॥८॥

English Transliteration

viśāṁ kaviṁ viśpatiṁ śaśvatīnāṁ nitośanaṁ vṛṣabhaṁ carṣaṇīnām | pretīṣaṇim iṣayantam pāvakaṁ rājantam agniṁ yajataṁ rayīṇām ||

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Pad Path

वि॒शाम्। क॒विम्। वि॒श्पति॑म्। शश्व॑तीनाम्। नि॒ऽतोश॑नम्। वृ॒ष॒भम्। च॒र्ष॒णी॒नाम्। प्रेति॑ऽइषणिम्। इ॒षय॑न्तम्। पा॒व॒कम्। राज॑न्तम्। अ॒ग्निम्। य॒ज॒तम्। र॒यी॒णाम् ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:1» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:36» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किस को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (शश्वतीनाम्) अनादिभूत (विशाम्) प्रजाओं के मध्य में (कविम्) तेजयुक्त दर्शन जिसका ऐसे (विश्पतिम्) प्रजा के पालनेवाले (नितोशनम्) पदार्थों के नाश करनेवाले (वृषभम्) बलिष्ठ और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों और (रयीणाम्) धनों और (प्रेतीषणिम्) अच्छे प्रकार से प्राप्त हुओं को प्राप्त होनेवाले (इषयन्तम्) प्राप्त कराते हुए और (यजतम्) प्राप्त होने योग्य (राजन्तम्) प्रकाशित होते हुए (पावकम्) पवित्र करनेवाले (अग्निम्) अग्नि को उत्तम प्रकार कार्य्यों में युक्त करें, वैसे आप लोग भी संप्रयुक्त करो ॥८॥
Connotation: - जो मनुष्य अग्नि का शरीर के सदृश सेवन करते हैं, वे प्रजा के स्वामी होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा वयं शश्वतीनां विशां मध्ये कविं विश्पतिं नितोशनं वृषभं चर्षणीनां रयीणां प्रेतीषणिमिषयन्तं यजतं राजन्तं पावकमग्निं सम्प्रयुञ्ज्महि तथा यूयमपि सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥८॥

Word-Meaning: - (विशाम्) प्रजानाम् (कविम्) क्रान्तदर्शनम् (विश्पतिम्) प्रजापालकम् (शश्वतीनाम्) अनादिभूतानाम् (नितोशनम्) पदार्थानां हिंसकम् (वृषभम्) बलिष्ठम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (प्रेतीषणिम्) प्रकर्षेण प्राप्तानामेषितारम् (इषयन्तम्) प्रापयन्तम् (पावकम्) (राजन्तम्) (अग्निम्) (यजतम्) सङ्गन्तव्यम् (रयीणाम्) धनानाम् ॥८॥
Connotation: - ये मनुष्या अग्निं शरीरवत्सेवन्ते ते प्रजापतयो जायन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे अग्नीचा शरीराप्रमाणे वापर करतात ती प्रजेचे स्वामी बनतात. ॥ ८ ॥