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इ॒मामू॒ ष्वा॑सु॒रस्य॑ श्रु॒तस्य॑ म॒हीं मा॒यां वरु॑णस्य॒ प्र वो॑चम्। माने॑नेव तस्थि॒वाँ अ॒न्तरि॑क्षे॒ वि यो म॒मे पृ॑थि॒वीं सूर्ये॑ण ॥५॥

English Transliteration

imām ū ṣv āsurasya śrutasya mahīm māyāṁ varuṇasya pra vocam | māneneva tasthivām̐ antarikṣe vi yo mame pṛthivīṁ sūryeṇa ||

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Pad Path

इ॒माम्। ऊँ॒ इति॑। सु। आ॒सु॒रस्य॑। श्रु॒तस्य॑। म॒हीम्। मा॒याम्। वरु॑णस्य। प्र। वो॒च॒म्। माने॑नऽइव। त॒स्थि॒ऽवान्। अ॒न्तरि॑क्षे। वि। यः। म॒मे। पृ॒थि॒वीम्। सूर्ये॑ण ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:85» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् और ईश्वर क्या करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (इमाम्) इस (श्रुतस्य) सुने गये (आसुरस्य) मेघ में उत्पन्न हुए और (वरुणस्य) श्रेष्ठ की (महीम्) आदर करने योग्य वाणी और (मायाम्) बुद्धि का आप लोगों के लिये (सु, प्र, वोचम्) उत्तम प्रकार उपदेश करूँ (उ) और (यः) जो (तस्थिवान्) ठहरनेवाला (मानेनेव) सत्कार से जैसे वैसे (अन्तरिक्षे) आकाश में (सूर्य्येण) सूर्य्य के साथ (पृथिवीम्) पृथिवी को (वि,ममे) विस्तारता है, उसको ईश्वर जानो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो मेघ की विद्या के जाननेवाले की वाणी और बुद्धि की प्रशंसा करता है और जो परमेश्वर सम्पूर्ण जगत् को रचता है, उन दोनों का सदा सत्कार करो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वदीश्वरौ किं कुरुत इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाहमिमां श्रुतस्याऽऽसुरस्य वरुणस्य महीं मायां युष्मदर्थं सु प्र वोचमु यस्तस्थिवान् मानेनेवान्तरिक्षे सूर्य्येण सह पृथिवीं वि ममे तमीश्वरं वि जानीत ॥५॥

Word-Meaning: - (इमाम्) (उ) (सु) (आसुरस्य) मेघभवस्य (श्रुतस्य) (महीम्) पूज्यां वाणीम्। महीति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (मायाम्) प्रज्ञाम् (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (प्र) (वोचम्) उपदिशेयम् (मानेनेव) सत्कारेणेव (तस्थिवान्) यस्तिष्ठति (अन्तरिक्षे) आकाशे (वि) (यः) (ममे) सृजति (पृथिवीम्) (सूर्य्येण) सवित्रा सह ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो मेघविद्याविदो वाणीं प्रज्ञां च प्रशंसति यश्च परमेश्वरो सर्वं जगद्रचयति तौ सदा सत्कुरुत ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो मेघाची विद्या जाणणाऱ्याची वाणी व बुद्धी यांची प्रशंसा करतो व जो परमेश्वर संपूर्ण जगाची रचना करते. त्या दोघांचा सदैव सत्कार करा. ॥ ५ ॥