इ॒मामू॒ ष्वा॑सु॒रस्य॑ श्रु॒तस्य॑ म॒हीं मा॒यां वरु॑णस्य॒ प्र वो॑चम्। माने॑नेव तस्थि॒वाँ अ॒न्तरि॑क्षे॒ वि यो म॒मे पृ॑थि॒वीं सूर्ये॑ण ॥५॥
imām ū ṣv āsurasya śrutasya mahīm māyāṁ varuṇasya pra vocam | māneneva tasthivām̐ antarikṣe vi yo mame pṛthivīṁ sūryeṇa ||
इ॒माम्। ऊँ॒ इति॑। सु। आ॒सु॒रस्य॑। श्रु॒तस्य॑। म॒हीम्। मा॒याम्। वरु॑णस्य। प्र। वो॒च॒म्। माने॑नऽइव। त॒स्थि॒ऽवान्। अ॒न्तरि॑क्षे। वि। यः। म॒मे। पृ॒थि॒वीम्। सूर्ये॑ण ॥५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब विद्वान् और ईश्वर क्या करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वदीश्वरौ किं कुरुत इत्याह ॥
हे मनुष्या ! यथाहमिमां श्रुतस्याऽऽसुरस्य वरुणस्य महीं मायां युष्मदर्थं सु प्र वोचमु यस्तस्थिवान् मानेनेवान्तरिक्षे सूर्य्येण सह पृथिवीं वि ममे तमीश्वरं वि जानीत ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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