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दृ॒ळ्हा चि॒द्या वन॒स्पती॑न्क्ष्म॒या दर्ध॒र्ष्योज॑सा। यत्ते॑ अ॒भ्रस्य॑ वि॒द्युतो॑ दि॒वो वर्ष॑न्ति वृ॒ष्टयः॑ ॥३॥

English Transliteration

dṛḻhā cid yā vanaspatīn kṣmayā dardharṣy ojasā | yat te abhrasya vidyuto divo varṣanti vṛṣṭayaḥ ||

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Pad Path

दृ॒ळ्हा। चि॒त्। या। वन॒स्पती॑न्। क्ष्म॒या। दर्ध॑र्षि। ओज॑सा। यत्। ते॒। अ॒भ्रस्य॑। वि॒ऽद्युतः॑। दि॒वः। वर्ष॑न्ति। वृ॒ष्टयः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:84» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! (या) जो (दृळ्हा) दृढ़ तुम (क्ष्मया) पृथिवी से (वनस्पतीन्) वृक्षादिकों को (दर्धर्षि) अत्यन्त धारण करती हो और (यत्) जो (चित्) निश्चित (ते) आप के (अभ्रस्य) घन की (दिवः) अन्तरिक्ष में हुई (विद्युतः) बिजुली और (वृष्टयः) वर्षायें (वर्षन्ति) वर्षती हैं, उनको तुम (ओजसा) बल से धारण करो ॥३॥
Connotation: - जो स्त्री पृथिवी के सदृश क्षमा से युक्त और पुत्र-पौत्रादि से युक्त होती है, वह वृष्टि के सदृश सुखों को वर्षानेवाली होती है ॥३॥ इस सूक्त में मेघ विद्वान् और स्त्री के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौरासीवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे स्त्रि ! या दृळ्हा त्वं क्ष्मया वनस्पतीन् दर्धर्षि यद्याश्चित्तेऽभ्रस्य दिवो विद्युतो वृष्टयो वर्षन्ति तास्त्वमोजसा धर ॥३॥

Word-Meaning: - (दृळ्हा) (चित्) (या) (वनस्पतीन्) (क्ष्मया) पृथिव्या (दर्धर्षि) भृशं दधासि (ओजसा) (यत्) या (ते) तव (अभ्रस्य) घनस्य (विद्युतः) (दिवः) दिव्याः (वर्षन्ति) (वृष्टयः) ॥३॥
Connotation: - या स्त्री पृथिवीवत् क्षमान्विता पुत्रपौत्रादियुक्ता भवति सा वृष्टिवत्सुखवर्षिका भवतीति ॥३॥ अत्र मेघविद्वत्स्त्रीगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुरशीतितमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी स्त्री पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील व पुत्रपौत्र इत्यादींनी युक्त असते ती वृष्टीप्रमाणे सुखाचा वर्षाव करणारी असते. ॥ ३ ॥