दृ॒ळ्हा चि॒द्या वन॒स्पती॑न्क्ष्म॒या दर्ध॒र्ष्योज॑सा। यत्ते॑ अ॒भ्रस्य॑ वि॒द्युतो॑ दि॒वो वर्ष॑न्ति वृ॒ष्टयः॑ ॥३॥
dṛḻhā cid yā vanaspatīn kṣmayā dardharṣy ojasā | yat te abhrasya vidyuto divo varṣanti vṛṣṭayaḥ ||
दृ॒ळ्हा। चि॒त्। या। वन॒स्पती॑न्। क्ष्म॒या। दर्ध॑र्षि। ओज॑सा। यत्। ते॒। अ॒भ्रस्य॑। वि॒ऽद्युतः॑। दि॒वः। वर्ष॑न्ति। वृ॒ष्टयः॑ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे स्त्रि ! या दृळ्हा त्वं क्ष्मया वनस्पतीन् दर्धर्षि यद्याश्चित्तेऽभ्रस्य दिवो विद्युतो वृष्टयो वर्षन्ति तास्त्वमोजसा धर ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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