बळि॒त्था पर्व॑तानां खि॒द्रं बि॑भर्षि पृथिवि। प्र या भूमिं॑ प्रवत्वति म॒ह्ना जि॒नोषि॑ महिनि ॥१॥
baḻ itthā parvatānāṁ khidram bibharṣi pṛthivi | pra yā bhūmim pravatvati mahnā jinoṣi mahini ||
बट्। इ॒त्था। पर्व॑तानाम्। खि॒द्रम्। बि॒भ॒र्षि॒। पृ॒थि॒वि॒। प्र। या। भूमि॑म्। प्र॒व॒त्व॒ति॒। म॒ह्ना। जि॒नोषि॑। म॒हि॒नि॒ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब तीन ऋचावाले चौरासीवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे प्रवत्वति महिनि पृथिवीव वर्त्तमाने ! या त्वं पर्वतानां मह्ना भूमिं धरसीत्था बट् सत्यं यतो बिभर्षि खिद्रं प्र जिनोषि तस्मात् सत्कर्त्तव्याऽसि ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात मेघ, विद्वान व स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.