यस्य॑ व्र॒ते पृ॑थि॒वी नन्न॑मीति॒ यस्य॑ व्र॒ते श॒फव॒ज्जर्भु॑रीति। यस्य॑ व्र॒त ओष॑धीर्वि॒श्वरू॑पाः॒ स नः॑ पर्जन्य॒ महि॒ शर्म॑ यच्छ ॥५॥
yasya vrate pṛthivī nannamīti yasya vrate śaphavaj jarbhurīti | yasya vrata oṣadhīr viśvarūpāḥ sa naḥ parjanya mahi śarma yaccha ||
यस्य॑। व्र॒ते। पृ॒थि॒वी। नन्न॑मीति। यस्य॑। व्र॒ते। श॒फऽव॑त्। जर्भु॑रीति। यस्य॑। व्र॒ते। ओष॑धीः। वि॒श्वऽरू॑पाः। सः। नः॒। प॒र्ज॒न्य॒। महि॑। शर्म॑। य॒च्छ॒ ॥५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह मेघ कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स मेघः कीदृश इत्याह ॥
हे पर्जन्य तद्वद्वर्त्तमान विद्वन् ! यस्य मेघस्य व्रते पृथिवी नन्नमीति यस्य व्रते शफवज्जर्भुरीति यस्य व्रते विश्वरूपा ओषधीर्जायन्ते तद्विद्यया युक्तः स त्वं नो महि शर्म्म यच्छ ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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