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विश्वा॑ रू॒पाणि॒ प्रति॑ मुञ्चते क॒विः प्रासा॑वीद्भ॒द्रं द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे। वि नाक॑मख्यत्सवि॒ता वरे॒ण्योऽनु॑ प्र॒याण॑मु॒षसो॒ वि रा॑जति ॥२॥

English Transliteration

viśvā rūpāṇi prati muñcate kaviḥ prāsāvīd bhadraṁ dvipade catuṣpade | vi nākam akhyat savitā vareṇyo nu prayāṇam uṣaso vi rājati ||

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Pad Path

विश्वा॑। रू॒पाणि॑। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ते॒। क॒विः। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। भ॒द्रम्। द्वि॒ऽपदे॑। चतुः॑ऽपदे। वि। नाक॑म्। अ॒ख्य॒त्। स॒वि॒ता। वरे॑ण्यः। अनु॑। प्र॒ऽयान॑म्। उ॒षसः॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:81» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्य ! जो (कविः) सर्व पदार्थों का जाननेवाला सर्वज्ञ (वरेण्यः) स्वीकार करने योग्य और (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का देनेवाला ईश्वर (द्विपदे) मनुष्य आदि और (चतुष्पदे) गौ आदि के लिये (भद्रम्) कल्याण को (प्र, असावीत्) उत्पन्न करता और (विश्वा) सम्पूर्ण (रूपाणि) सूर्य्य आदिकों का (प्रति, मुञ्चते) त्याग करता है तथा (नाकम्) नहीं विद्यमान दुःख जिसमें उसका (वि, अख्यत्) प्रकाश करता है, वह जैसे (उषसः) प्रातःकाल के (अनु, प्रयाणम्) पीछे गमन को सूर्य्य (वि, राजति) विशेष करके शोभित करता है, वैसे सूर्य्य आदि को प्रकाशित करता है, उसकी तुम सब उपासना करो ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर ने विचित्र और अनेक प्रकार के जगत् को सम्पूर्ण प्राणियों के सुख के लिये रचा, उसी जगदीश्वर की आप लोग उपासना करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः कविर्वरेण्यः सवितेश्वरो द्विपदे चतुष्पदे भद्रं प्रासावीत्। विश्वा रूपाणि प्रति मुञ्चते नाकं व्यख्यत् स यथोषसोऽनु प्रयाणं सूर्यो वि राजति तथा सूर्य्यादिकं प्रकाशयति तं सर्वे यूयमुपाध्वम् ॥२॥

Word-Meaning: - (विश्वा) सर्वाणि (रूपाणि) सूर्यादीनि (प्रति) (मुञ्चते) त्यजति (कविः) सर्वेषां क्रान्तप्रज्ञः सर्वज्ञः (प्र) (असावीत्) उत्पादयति (भद्रम्) कल्याणम् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (चतुष्पदे) गवाद्याय (वि) (नाकम्) अविद्यमानदुःखम् (अख्यत्) ख्याति प्रकाशयति (सविता) सकलैश्वर्य्यप्रदः (वरेण्यः) वरितुमर्हः (अनु) (प्रयाणम्) (उषसः) (वि) (राजति) प्रकाशते ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येन जगदीश्वरेण विचित्रं विविधं जगत्सर्वेषां प्राणिनां सुखाय निर्मितं तमेव यूयं भजध्वम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्या जगदीश्वराने विचित्र व विविध प्रकारच्या जगाला संपूर्ण प्राण्यांच्या सुखासाठी निर्माण केलेले आहे. त्याच जगदीश्वराची उपासना करा. ॥ २ ॥