Go To Mantra

द्यु॒तद्या॑मानं बृह॒तीमृ॒तेन॑ ऋ॒ताव॑रीमरु॒णप्सुं॑ विभा॒तीम्। दे॒वीमु॒षसं॒ स्व॑रा॒वह॑न्तीं॒ प्रति॒ विप्रा॑सो म॒तिभि॑र्जरन्ते ॥१॥

English Transliteration

dyutadyāmānam bṛhatīm ṛtena ṛtāvarīm aruṇapsuṁ vibhātīm | devīm uṣasaṁ svar āvahantīm prati viprāso matibhir jarante ||

Mantra Audio
Pad Path

द्यु॒तत्ऽया॑मानम्। बृ॒ह॒तीम्। ऋ॒तेन॑। ऋ॒तऽव॑रीम्। अ॒रु॒णऽप्सु॑म्। वि॒ऽभा॒तीम्। दे॒वीम्। उ॒षस॑म्। स्वः॑। आ॒ऽवह॑न्तीम्। प्रति॑। विप्रा॑सः। म॒तिऽभिः॑। ज॒र॒न्ते॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:80» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले अस्सीवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में स्त्रियों के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! जैसे (विप्रासः) बुद्धिमान् जन (मतिभिः) बुद्धियों से और (ऋतेन) जल के सदृश सत्य से (द्युतद्यामानम्) प्रहरों को प्रकाश करती और (बृहतीम्) बढ़ती हुई (ऋतावरीम्) बहुत सत्य आचरण से युक्त (अरुणप्सुम्) लालरूपवाली (विभातीम्) प्रकाश करती हुई (देवीम्) प्रकाशमान और (स्वः) सूर्य्य के सदृश विद्या के प्रकाश को (आवहन्तीम्) धारण करती हुई (उषसम्) उषर्वेला की (प्रति) उत्तम प्रकार (जरन्ते) स्तुति करते हैं, उनकी तू प्रशंसा कर ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बुद्धिमान् पति उषःकाल आदि पदार्थों की विद्या को जान कर क्षणभर भी काल व्यर्थ नहीं व्यतीत करते हैं, वैसे ही स्त्रियाँ भी व्यर्थ समय न व्यतीत करें ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ स्त्रीगुणानाह ॥

Anvay:

हे स्त्रि ! यथा विप्रासो मतिभिर्ऋतेन द्युतद्यामानं बृहतीमृतावरीमरुणप्सुं विभातीं देवीं स्वरावहन्तीमुषसं प्रति जरन्ते तांस्त्वं प्रशंस ॥१॥

Word-Meaning: - (द्युतद्यामानम्) प्रहरान् द्योतयन्तीम् (बृहतीम्) (ऋतेन) जलेनेव सत्येन (ऋतावरीम्) बहुसत्याचरणयुक्ताम् (अरुणप्सुम्) प्सु इति रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) (विभातीम्) प्रकाशयन्तीम् (देवीम्) देदीप्यमानाम् (उषसम्) प्रातर्वेलाम् (स्वः) आदित्यमिव विद्याप्रकाशम् (आवहन्तीम्) प्रापयन्तीम् (प्रति) (विप्रासः) (मतिभिः) प्रज्ञाभिः (जरन्ते) स्तुवन्ति ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा मेधाविनः पतय उषसादिपदार्थविद्यां विज्ञाय क्षणमपि कालं व्यर्थं न नयन्ति तथैव स्त्रियोऽपि निरर्थकं समयन्न गमयेयुः ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात प्रातःकाळ व स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बुद्धिमान पती उषःकाल इत्यादींची विद्या जाणून क्षणभरही व्यर्थ काळ घालवित नाहीत. तसा स्त्रियांनी व्यर्थ काळ घालवू नये. ॥ १ ॥