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त्वाम॑ग्ने॒ अति॑थिं पू॒र्व्यं विशः॑ शो॒चिष्के॑शं गृ॒हप॑तिं॒ नि षे॑दिरे। बृ॒हत्के॑तुं पुरु॒रूपं॑ धन॒स्पृतं॑ सु॒शर्मा॑णं॒ स्वव॑सं जर॒द्विष॑म् ॥२॥

English Transliteration

tvām agne atithim pūrvyaṁ viśaḥ śociṣkeśaṁ gṛhapatiṁ ni ṣedire | bṛhatketum pururūpaṁ dhanaspṛtaṁ suśarmāṇaṁ svavasaṁ jaradviṣam ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। अति॑थिम्। पू॒र्व्यम्। विशः॑। शो॒चिःऽके॑शम्। गृ॒हऽप॑तिम्। नि। से॒दि॒रे॒। बृ॒हत्ऽके॑तुम्। पु॒रु॒ऽरूप॑म्। ध॒न॒ऽस्पृत॑म्। सु॒ऽशर्मा॑णम्। सु॒ऽअव॑सम्। ज॒र॒त्ऽविष॑म् ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:8» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) गृहस्थ जो (विशः) प्रजायें (अतिथिम्) सदा उपदेश देने के लिये घूमते हुए के सदृश वर्त्तमान (पूर्व्यम्) प्राचीनों से किये गये विद्वान् और (शोचिष्केशम्) केशों के सदृश न्यायव्यवहार के प्रकाशों से युक्त (बृहत्केतुम्) बड़ी बुद्धिवाले (पुरुरूपम्) बहुत रूपों से युक्त सुन्दर आकृतिमान् (धनस्पृतम्) धन की इच्छा से युक्त (सुशर्म्माणम्) प्रशंसित गृहवाले (स्ववसम्) श्रेष्ठ रक्षण आदि जिनके (जरद्विषम्) वा निवृत्त हुआ शत्रुरूपी विष जिनका ऐसे (गृहपतिम्) गृहव्यवहार के पालन करनेवाले (त्वाम्) आप को (नि, षेदिरे) स्थित करते हैं, उनका आप निरन्तर सत्कार करें ॥२॥
Connotation: - गृहस्थ जन सदा ही प्रजा का पालन, अतिथि की सेवा, उत्तम गृह तथा विद्या का प्रचार, बुद्धि की वृद्धि, सब प्रकार से रक्षा तथा राग और द्वेष का त्याग निरन्तर करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! या विशोऽतिथिमिव वर्त्तमानं पूर्व्यं शोचिष्केशं बृहत्केतुं पुरुरूपं धनस्पृतं सुशर्म्माणं स्ववसं जरद्विषं गृहपतिं त्वां नि षेदिरे तास्त्वं सततं सत्कुर्य्याः ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) गृहस्थ (अतिथिम्) सर्वदोपदेशाय भ्रमन्तम् (पूर्व्यम्) पूर्वैः कृतं विद्वांसम् (विशः) प्रजाः (शोचिष्केशम्) शोचींषि न्यायव्यवहारप्रकाशाः केशा इव यस्य तम् (गृहपतिम्) गृहव्यवहारपालकम् (नि, षेदिरे) निषीदन्ति (बृहत्केतुम्) महाप्रज्ञम् (पुरुरूपम्) बहुरूपयुक्तं सुन्दराकृतिम् (धनस्पृतम्) धनस्पृहायुक्तम् (सुशर्म्माणम्) प्रशंसितगृहम् (स्ववसम्) शोभनमवो रक्षणादिकं यस्य तम् (जरद्विषम्) जरद् विनष्टं शत्रुरूपं विषं यस्य तम् ॥२॥
Connotation: - गृहस्थाः सदैव प्रजापालनमतिथिसेवामुत्तमगृहाणि विद्याप्रचारं प्रज्ञावर्द्धनं सर्वतो रक्षणं रागद्वेषराहित्यं च सततं कुर्युः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - गृहस्थांनी सदैव प्रजेचे पालन, अतिथींची सेवा, उत्तम गृहनिर्माण विद्येचा प्रचार, बुद्धीची वृद्धी, सर्व प्रकारे रक्षण व रागद्वेषाचा सतत त्याग करावा. ॥ २ ॥