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त्वाम॑ग्न ऋता॒यवः॒ समी॑धिरे प्र॒त्नं प्र॒त्नास॑ ऊ॒तये॑ सहस्कृत। पु॒रु॒श्च॒न्द्रं य॑ज॒तं वि॒श्वधा॑यसं॒ दमू॑नसं गृ॒हप॑तिं॒ वरे॑ण्यम् ॥१॥

English Transliteration

tvām agna ṛtāyavaḥ sam īdhire pratnam pratnāsa ūtaye sahaskṛta | puruścandraṁ yajataṁ viśvadhāyasaṁ damūnasaṁ gṛhapatiṁ vareṇyam ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ऋ॒त॒ऽयवः॑। सम्। ई॒धि॒रे॒। प्र॒त्नम्। प्र॒त्नासः॑। ऊ॒तये॑। स॒हः॒ऽकृ॒त॒। पु॒रु॒ऽच॒न्द्रम्। य॒ज॒तम्। वि॒श्वऽधा॑यसम्। दमू॑नसम्। गृ॒हऽप॑तिम्। वरे॑ण्यम् ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:8» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्निशब्दार्थ गृहाश्रमी के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहस्कृत) बल किये (अग्ने) और ब्रह्मचर्य्य किये हुए गृहाश्रमी ! (प्रत्नासः) प्राचीन विद्वान् जन (ऋतायवः) सत्य की इच्छा करनेवाले (ऊतये) रक्षण आदि के लिये जिस (प्रत्नम्) प्राचीन (पुरुश्चन्द्रम्) बहुत सुवर्ण आदि से युक्त (यजतम्) आदर करने योग्य (विश्वधायसम्) सब व्यवहार और धन के धारण तथा (दमूनसम्) इन्द्रिय और अन्तःकरण के दमन करनेवाले (वरेण्यम्) अतीव स्वीकार करने योग्य और श्रेष्ठ (गृहपतिम्) गृहस्थ व्यवहार के पालन करनेवाले (त्वाम्) आप को (सम्, ईधिरे) उत्तम प्रकार प्रकाशित करावें, वह आप इनका सत्कार करो ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो आप लोगों की विद्या और दान आदिकों से वृद्धि करते हैं, उनका आप लोग निरन्तर सत्कार करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निशब्दार्थगृहाश्रमविषयमाह ॥

Anvay:

हे सहस्कृताग्ने ! प्रत्नास ऋतायव ऊतये यं प्रत्नं पुरुश्चन्द्रं यजतं विश्वधायसं [दमूनसं] वरेण्यं गृहपतिं त्वां समीधिरे स त्वमेतान् सत्कुरु ॥१॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) कृतब्रह्मचर्य्यगृहाश्रमिन् (ऋतायवः) ऋतं सत्यमिच्छवः (सम्, ईधिरे) सम्यक् प्रदीपयेयुः (प्रत्नम्) प्राचीनम् (प्रत्नासः) प्राचीना विद्वांसः (ऊतये) रक्षणाद्याय (सहस्कृत) सहो बलं कृतं येन तत्सम्बुद्धौ (पुरुश्चन्द्रम्) बहुहिरण्यादियुक्तम् (यजतम्) पूजनीयम् (विश्वधायसम्) सर्वव्यवहारधनधर्त्तारम् (दमूनसम्) इन्द्रियान्तःकरणस्य दमकरम् (गृहपतिम्) गृहव्यवहारपालकम् (वरेण्यम्) अतिशयेन वर्त्तव्यम् ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये युष्मान् विद्यादानादिभिर्वर्धयन्ति तान् यूयं सततं सत्कुरुत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जे विद्या व दान यांनी तुमची वृद्धी करतात त्यांचा तुम्ही निरंतर सत्कार करा. ॥ १ ॥