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व्यु॑च्छा दुहितर्दिवो॒ मा चि॒रं त॑नुथा॒ अपः॑। नेत्त्वा॑ स्ते॒नं यथा॑ रि॒पुं तपा॑ति॒ सूरो॑ अ॒र्चिषा॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥९॥

English Transliteration

vy ucchā duhitar divo mā ciraṁ tanuthā apaḥ | net tvā stenaṁ yathā ripuṁ tapāti sūro arciṣā sujāte aśvasūnṛte ||

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Pad Path

वि। उ॒च्छ॒। दु॒हि॒तः॒। दि॒वः॒। मा। चि॒रम्। त॒नु॒थाः॒। अपः॑। नः। इत्। त्वा॒। स्ते॒नम्। यथा॑। रि॒पुम्। तपा॑ति। सूरः॑। अ॒र्चिषा॑। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥९॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:79» Mantra:9 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त (दिवः) प्रकाश की (दुहितः) कन्या के सदृश वर्त्तमान उत्तम आचरणवाली स्त्रि ! तू (अपः) कर्म को (चिरम्) बहुत काल पर्यन्त (मा) नहीं (तनुथाः) विस्तार कर (यथा) जैसे (रिपुम्) शत्रु को (तपाति) संतापित करती है, वैसे (स्तेनम्) चोर को सन्तापित कर और (त्वा) तुझको कोई भी (न) नहीं सन्तापयुक्त करे और जैसे (अर्चिषा) तेज से (सूरः) सूर्य सब को तपाता है, वैसे (इत्) ही तू दुष्टजनों को सन्तापित करके हम लोगों को (वि, उच्छा) अच्छे प्रकार वसाओ ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री और पुरुष मन्द, आलसी और चोर नहीं होते हैं, वे सूर्य्य के सदृश प्रकाशित होते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सुजाते अश्वसूनृते दिवो दुहितरिव वर्त्तमाने शुभाचारे स्त्रि ! त्वमपश्चिरं मा तनुथाः। यथा रिपुं तपाति तथा स्तेनं तापय त्वा कोऽपि न तापयतु यथार्चिषा सूरः सर्वान् तापयति तथेत्त्वं दुष्टान् तापयित्वाऽस्मान् व्युच्छा ॥९॥

Word-Meaning: - (वि) (उच्छा) निवासय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (दुहितः) कन्येव (दिवः) प्रकाशस्य (मा) (चिरम्) (तनुथाः) विस्तारयेः (अपः) कर्म्म (न) निषेधे (इत्) एव (त्वा) त्वाम् (स्तेनम्) चोरम् (यथा) (रिपुम्) शत्रुम् (तपाति) तापयति (सूरः) सूर्य्यः (अर्चिषा) तेजसा (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये स्त्रीपुरुषा दीर्घसूत्रिणोऽलसाः स्तेनाश्च न भवन्ति ते सूर्य्यवत्प्रकाशिता भवन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्त्री पुरुष मंद, आळशी, चोर नसतात ते सूर्याप्रमाणे तेजस्वी असतात. ॥ ९ ॥