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यच्चि॒द्धि ते॑ ग॒णा इ॒मे छ॒दय॑न्ति म॒घत्त॑ये। परि॑ चि॒द्वष्ट॑यो दधु॒र्दद॑तो॒ राधो॒ अह्र॑यं॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥५॥

English Transliteration

yac cid dhi te gaṇā ime chadayanti maghattaye | pari cid vaṣṭayo dadhur dadato rādho ahrayaṁ sujāte aśvasūnṛte ||

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Pad Path

यत्। चि॒त्। हि। ते॒। ग॒णाः। इ॒मे। छ॒दय॑न्ति। म॒घत्त॑ये। परि॑। चि॒त्। वष्ट॑यः। द॒धुः॒। दद॑तः। राधः॑। अह्र॑यम्। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:79» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई विदुषि स्त्रि ! (यत्) जो (इमे) ये (वष्टयः) कामना करते हुए (ते) आप के (गणाः) समूह (मघत्तये) धनदान के लिये (अह्रयम्) लज्जा आदि दोष से रहित को (चित्) और (राधः) धन को (ददतः) देनेवालों को (चित्) निश्चय (छदयन्ति) प्रबल करते हैं, वे निश्चय (हि) ही सुखों की (परि, दधुः) धारण करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रातःकाल के किरणसमूह अपने तेज से सब को ढाँपते हैं, वैसे ही शुभगुणवाली स्त्रियाँ अपने शुभगुणों से सब को आच्छादित करती हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अश्वसूनृते सुजाते विदुषि स्त्रि ! यद्य इमे वष्टयस्ते गणा मघत्तयेऽह्रयं चिद्राधो ददतश्चिच्छदयन्ति ते चिद्धि सुखानि परि दधुः ॥५॥

Word-Meaning: - (यत्) ये (चित्) अपि (हि) एव (ते) तव (गणाः) समूहाः (इमे) (छदयन्ति) ऊर्जयन्ति (मघत्तये) धनदानाय (परि) (चित्) (वष्टयः) कामयमानाः (दधुः) धरन्तु (ददतः) दानशीलान् (राधः) धनम् (अह्रयम्) लज्जादिदोषरहितम् (सुजाते) (अश्वसूनते) ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथोषसः किरणगणाः स्वतेजसा सर्वाञ्छादयन्ति तथैव शुभगुणस्त्रियः स्वैः शुभैर्गुणैः सर्वाञ्छादयन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे प्रातःकाळचे किरणसमूह आपल्या तेजाने सर्वांना प्रकाशित करतात तसेच शुभगुणयुक्त स्त्रिया आपल्या शुभगुणांनी सर्वांना आकर्षित करतात. ॥ ५ ॥