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यो भूयि॑ष्ठं॒ नास॑त्याभ्यां वि॒वेष॒ चनि॑ष्ठं पि॒त्वो रर॑ते विभा॒गे। स तो॒कम॑स्य पीपर॒च्छमी॑भि॒रनू॑र्ध्वभासः॒ सद॒मित्तु॑तुर्यात् ॥४॥

English Transliteration

yo bhūyiṣṭhaṁ nāsatyābhyāṁ viveṣa caniṣṭham pitvo rarate vibhāge | sa tokam asya pīparac chamībhir anūrdhvabhāsaḥ sadam it tuturyāt ||

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Pad Path

यः। भूयि॑ष्ठम्। नास॑त्याभ्याम्। वि॒वेष॑। चनि॑ष्ठम्। पि॒त्वः। रर॑ते। वि॒ऽभा॒गे। सः। तो॒कम्। अ॒स्य॒। पी॒प॒र॒त्। शमी॑भिः। अनू॑र्ध्वऽभासः। सद॑म्। इत्। तु॒तु॒र्या॒त् ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:77» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (नासत्याभ्याम्) नहीं विद्यमान असत्य जिनके उनसे (शमीभिः) कर्म्मों के द्वारा (भूयिष्ठम्) अतीव बहुत (चनिष्ठम्) अतिशय अन्न को (विवेष) व्याप्त होता है और (पित्वः) अन्न के (विभागे) विभाग में (ररते) देता है (सः) वह (अनूर्ध्वभासः) नहीं ऊपर कान्तियाँ जिसकी (अस्य) इसके (तोकम्) सन्तान का (पीपरत्) पालन करे वह (इत्) ही (सदम्) प्राप्त दुःख का (तुतुर्यात्) नाश करे ॥४॥
Connotation: - जो अग्नि और जल से बहुत कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे जगत् का रक्षण करके सम्पूर्ण दुःख के नाश करने योग्य हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नासत्याभ्यां शमीभिर्भूयिष्ठं चनिष्ठं विवेष पित्वो विभागे ररते सोऽनूर्ध्वभासोऽस्य तोकं पीपरत् स इत्सदं तुतुर्यात् ॥४॥

Word-Meaning: - (यः) (भूयिष्ठम्) अतिशयेन बहु (नासत्याभ्याम्) अविद्यमानासत्याभ्याम् (विवेष) वेवेष्टि (चनिष्ठम्) अतिशयेनान्नम् (पित्वः) अन्नस्य (ररते) राति ददाति (विभागे) (सः) (तोकम्) अपत्यम् (अस्य) (पीपरत्) पालयेत् (शमीभिः) कर्म्मभिः (अनूर्ध्वभासः) न ऊर्द्ध्वा भासो दीप्तिर्यस्य (सदम्) प्राप्तं दुःखम् (इत्) (तुतुर्यात्) हिंस्यात् ॥४॥
Connotation: - येऽग्न्युदकाभ्यां बहूनि कार्य्याणि साध्नुवन्ति ते जगतो रक्षणं कृत्वा सर्वं विषादं हन्तुमर्हन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे अग्नी व जलाने पुष्कळ कार्य करतात. ते जगाचे रक्षण करून संपूर्ण दुःखाचा नाश करू शकतात. ॥ ४ ॥