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अभू॑दु॒षा रुश॑त्पशु॒राग्निर॑धाय्यृ॒त्वियः॑। अयो॑जि वां वृषण्वसू॒ रथो॑ दस्रा॒वम॑र्त्यो॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥९॥

English Transliteration

abhūd uṣā ruśatpaśur āgnir adhāyy ṛtviyaḥ | ayoji vāṁ vṛṣaṇvasū ratho dasrāv amartyo mādhvī mama śrutaṁ havam ||

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Pad Path

अभू॑त्। उ॒षाः। रुश॑त्ऽपशुः। आ। अ॒ग्निः। अ॒धा॒यि॒। ऋ॒त्वियः॑। अयो॑जि। वा॒म्। वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू। रथः॑। द॒स्रौ॒। अम॑र्त्यः। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥९॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:75» Mantra:9 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर स्त्री-पुरुष कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वृषण्वसू) बलिष्ठ दो देहों को वसाने और (दस्रौ) दुःख के नाश करनेवाले (माध्वी) मधुर स्वभाववाले स्त्री-पुरुषो ! जिन (वाम्) आप दोनों को (रुशत्पशुः) पाला पशु जिसने वह (ऋत्वियः) ऋतु-ऋतु में यज्ञ करानेवाला (अग्निः) अग्नि (आ, अधायि) स्थापन किया जाता है और (उषाः) प्रातःकाल के सदृश (अभूत्) होवे और (अमर्त्यः) नहीं विद्यमान मनुष्य जिसमें ऐसा (रथः) वाहन (अयोजि) युक्त किया जाता वे आप दोनों (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को (श्रुतम्) सुनिये और हे स्त्री के पति ! जो पत्नी प्रातःकाल के सदृश होवे, उसको निरन्तर प्रसन्न करो ॥९॥
Connotation: - सदा स्त्री-पुरुष ऋतुगामी होवें, सदा शरीर के आरोग्य और पुष्टि को करें तथा विद्या की उन्नति करके आनन्द की उन्नति करें ॥९॥ इस सूक्त में अश्विपदवाच्य विद्वान् स्त्री-पुरुष के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पचहत्तरवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

Anvay:

हे वृषण्वसू दस्रौ माध्वी स्त्रीपुरुषौ ! ययोर्वां रुशत्पशुर्ऋत्वियोऽग्निराऽधाय्युषा अभूत्। अमर्त्यो रथोऽयोजि तौ युवां मम हवं श्रुतम्, हे पते ! या पत्न्युषा इवाभूतां सततं प्रसादय ॥९॥

Word-Meaning: - (अभूत्) भवेत् (उषाः) प्रातर्वेलेव (रुशत्पशुः) पालितः पशुर्येन सः। रुशदिति पशुनामसु पठितम्। (निघं०४.३) (आ) (अग्निः) पावकः (अधायि) ध्रियते (ऋत्वियः) ऋतुयाजकः (अयोजि) योज्यते (वाम्) युवयोः (वृषण्वसू) यौ वृषणौ बलिष्ठौ देहौ वासयतस्तौ (रथः) यानम् (दस्रौ) दुःखनाशकौ (अमर्त्यः) अविद्यमाना मर्त्या यस्मिन् सः (माध्वी) (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥९॥
Connotation: - सदा स्त्रीपुरुषावृतुगामिनौ भवेतां सर्वदा शरीरस्यारोग्यं पुष्टिं च सम्पादयेतां विद्योन्नतिञ्च विधायाऽऽनन्दमुन्नयतामिति ॥९॥ अत्राश्विविद्वत्स्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चसप्ततितमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - स्त्री-पुरुषांनी सदैव ऋतुगामी असावे. सदैव शरीर व आरोग्य सुदृढ ठेवावे. तसेच विद्येची उन्नती करून आनंदाची वृद्धी करावी. ॥ ९ ॥