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अ॒स्मिन्य॒ज्ञे अ॑दाभ्या जरि॒तारं॑ शुभस्पती। अ॒व॒स्युम॑श्विना यु॒वं गृ॒णन्त॒मुप॑ भूषथो॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥८॥

English Transliteration

asmin yajñe adābhyā jaritāraṁ śubhas patī | avasyum aśvinā yuvaṁ gṛṇantam upa bhūṣatho mādhvī mama śrutaṁ havam ||

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Pad Path

अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। अ॒दा॒भ्या॒। ज॒रि॒तार॑म्। शु॒भः॒। प॒ती॒ इति॑। अ॒व॒स्युम्। अ॒श्वि॒ना॒। यु॒वम्। गृ॒णन्त॑म्। उप॑। भू॒ष॒थः॒। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:75» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर स्त्रीपुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अदाभ्या) नहीं हिंसा करने योग्य (माध्वी) मधुर स्वभाववाले (शुभः, पती) कल्याणकारक व्यवहार के पालन करनेवाले (अश्विना) ब्रह्मचर्य्य से प्राप्त हुई विद्या जिनको ऐसे स्त्री पुरुषो ! (युवम्) आप दोनों (अस्मिन्) इस गृहाश्रम नामक (यज्ञे) उत्तम प्रकार प्राप्त होने योग्य यज्ञ में (जरितारम्) स्तुति करने और (अवस्युम्) अपने कल्याण की इच्छा वा कामना करनेवाले (गृणन्तम्) स्तुति करते हुए जन को (उप, भूषथः) शोभित करते हो (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को भी (श्रुतम्) सुनिये ॥८॥
Connotation: - जो स्त्री पुरुष गृहाश्रम में वर्त्तमान उत्तम आचरणवाले स्तुतियों से स्तुति करनेवाले गृह के कृत्यों को शोभित करते हैं तथा अध्यापन और परीक्षा से विद्या का उन्नति करते हैं, वे ही इस जगत् में प्रशंसित होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रीपुरुषौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे अदाभ्या माध्वी शुभस्पती अश्विना ! युवस्मिन् यज्ञे जरितारमवस्युं गृणन्तं जनमुपभूषथो मम हवं च श्रुतम् ॥८॥

Word-Meaning: - (अस्मिन्) गृहाश्रमाख्ये (यज्ञे) सम्यग्गन्तव्ये (अदाभ्या) अहिंसनीयौ (जरितारम्) स्तोतारम् (शुभः, पती) कल्याणकरव्यवहारस्य पालकौ (अवस्युम्) आत्मनोऽवं रक्षणमिच्छुं कामयमानं वा (अश्विना) ब्रह्मचर्य्येण प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषौ (युवम्) युवाम् (गृणन्तम्) स्तुवन्तम् (उप) (भूषथः) (माध्वी) (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥८॥
Connotation: - ये स्त्रीपुरुषा गृहाश्रमे वर्त्तमानाः शुभाचरणाः स्तुतिभिः स्तावका गृहकृत्यान्यलङ्कुर्वन्ति। अध्यापनपरीक्षाभ्यां विद्यां चोन्नयन्ति त एवेह प्रशंसिता भवन्ति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे स्त्री-पुरुष गृहस्थाश्रमात उत्तम आचरण करतात. प्रशंसनीय गृहकृत्ये करतात. अध्यापन करून परीक्षेने विद्येची उन्नती करतात तेच या जगात प्रशंसनीय ठरतात. ॥ ८ ॥