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अ॒त्याया॑तमश्विना ति॒रो विश्वा॑ अ॒हं सना॑। दस्रा॒ हिर॑ण्यवर्तनी॒ सुषु॑म्ना॒ सिन्धु॑वाहसा॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥२॥

English Transliteration

atyāyātam aśvinā tiro viśvā ahaṁ sanā | dasrā hiraṇyavartanī suṣumnā sindhuvāhasā mādhvī mama śrutaṁ havam ||

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Pad Path

अ॒ति॒ऽआया॑तम्। अ॒श्वि॒ना॒। ति॒रः। विश्वाः॑। अ॒हम्। सना॑। दस्रा॑। हिर॑ण्यवर्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्तनी। सुऽसु॑म्ना। सिन्धु॑ऽवाहसा। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:75» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किस विषय की इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (दस्रा) दुःख के दूर करने और (हिरण्यवर्त्तनी) ज्योतिः वा सुवर्ण को वर्त्तानेवाले ! (सुषुम्ना) उत्तम सुख से युक्त तथा (सिन्धुवाहसा) नदियों को प्राप्त करानेवालो ! (माध्वी) मधुर गति से युक्त और (अश्विना) शिल्प कार्य्यों के जाननेवालो ! जैसे (अहम्) मैं (सना) सदा (विश्वाः) सम्पूर्ण विद्याओं को ग्रहण करता हूँ, वैसे आप दोनों (अत्यायातम्) देशों का अतिक्रमण करके आइये और (मम) मेरा (तिरः) तिरस्कारपूर्वक (हवम्) पठित (श्रुतम्) सुनिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिन विद्वानों से विद्याओं को आप लोग पढ़ो, वे जब-जब परीक्षा करें, तब-तब तिरस्कार के साथ वर्त्तमान को धारण करें, जिससे सब को अच्छे प्रकार विद्या प्राप्त होवे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे दस्रा हिरण्यवर्त्तनी सुषुम्ना सिन्धुवाहसा माध्वी अश्विना ! यथाहं सना विश्वा विद्या गृह्णामि तथा युवामत्यायातं मम तिरो हवं श्रुतम् ॥२॥

Word-Meaning: - (अत्यायातम्) देशानतिक्रम्याऽऽगच्छतम् (अश्विना) शिल्पकार्य्यविदौ (तिरः) (विश्वाः) समग्राः (अहम्) (सना) सदा (दस्रा) दुःखनिवारकौ (हिरण्यवर्त्तनी) यौ हिरण्यं ज्योतिः सुवर्णं वा वर्त्तयतस्तौ (सुषुम्ना) सुष्ठु सुखयुक्तौ (सिन्धुवाहसा) यौ सिन्धुं वहतः प्रापयतस्तौ (माध्वी) मधुरगतिमन्तौ (मम) (श्रुतम्) शृणुतम् (हवम्) अधीतम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! येभ्यो विद्वद्भ्यो विद्या यूयमधीध्वं ते यदा यदा परीक्षां कुर्युस्तदा तदा तिरस्कारपुरःसरं वर्त्तमानं विदधीरन् यतः सर्वान् सम्यग्विद्या प्राप्नुयात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्या विद्वानांकडून तुम्ही विद्या शिकता त्यांनी परीक्षा घेतल्यावर सर्वांना सध्याच्या विद्येपेक्षा चांगल्या प्रकारची विद्याप्राप्ती होईल असा प्रयत्न करा. ॥ २ ॥