कूष्ठो॑ देवावश्विना॒द्या दि॒वो म॑नावसू। तच्छ्र॑वथो वृषण्वसू॒ अत्रि॑र्वा॒मा वि॑वासति ॥१॥
kūṣṭho devāv aśvinādyā divo manāvasū | tac chravatho vṛṣaṇvasū atrir vām ā vivāsati ||
कूऽस्थः॑। दे॒वौ॒। अ॒श्वि॒ना॒। अ॒द्य। दि॒वः। म॒ना॒व॒सू॒ इति॑। तत्। श्र॒व॒थः॒। वृ॒ष॒ण्ऽव॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू। अत्रिः॑। वा॒म्। आ। वि॒वा॒स॒ति॒ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब दश ऋचावाले चौहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में अब मनुष्यों को क्या अनुष्ठान करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्यैः किमनुष्ठेयमित्याह ॥
हे मनावसू वृषण्वसू अश्विना देवौ ! यः कूष्ठोऽत्रिरद्य दिवो वामाविवासति तद्युवां श्रवथः ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अध्यापक, उपदेशक व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.