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ई॒र्मान्यद्वपु॑षे॒ वपु॑श्च॒क्रं रथ॑स्य येमथुः। पर्य॒न्या नाहु॑षा यु॒गा म॒ह्ना रजां॑सि दीयथः ॥३॥

English Transliteration

īrmānyad vapuṣe vapuś cakraṁ rathasya yemathuḥ | pary anyā nāhuṣā yugā mahnā rajāṁsi dīyathaḥ ||

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Pad Path

ई॒र्मा। अ॒न्यत्। वपु॑षे। वपुः॑। च॒क्रम्। रथ॑स्य। ये॒म॒थुः॒। परि॑। अ॒न्या। नाहु॑षा। यु॒गा। म॒ह्ना। रजां॑सि। दी॒य॒थः॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:73» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को इसके आगे क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्री और पुरुषो ! वायु और सूर्य्य के सदृश जो तुम (रथस्य) वाहन के (चक्रम्) चलता है जिससे उस पहिये के सदृश (वपुषे) सुन्दर रूप के लिये (अन्यत्) अन्य (ईर्मा) प्राप्त होने वा जानने योग्य (वपुः) सुरूप को (येमथुः) प्राप्त होओ और (अन्या) अन्य (नाहुषा) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगा) वर्ष वा वर्षों के समूहों को (परि) सब ओर से प्राप्त होओ और (मह्ना) महत्त्व से (रजांसि) लोकों का (दीयथः) नाश करते हो, वे कालविद्या के जानने योग्य हो ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे रथ के पहिये घूमते हैं, वैसे दिन-रात्रि कालसम्बन्धी चक्र घूमता है, जिससे क्षण आदि तथा युग, कल्प और महाकल्प आदि सम्बन्धी गणितविद्या सिद्ध होती है, ऐसा जानो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैरतः परं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे स्त्रीपुरुषौ ! वायुसूर्य्याविव यौ युवां रथस्य चक्रमिव वपुषेऽन्यदीर्मा वपुर्येमथुरन्या नाहुषा युगा परियेमथुर्मह्ना रजांसि दीयथस्तौ कालविद्यां ज्ञातुमर्हथः ॥३॥

Word-Meaning: - (ईर्मा) प्राप्तव्यं ज्ञातव्यं वा (अन्यत्) (वपुषे) सुरूपाय (वपुः) सुरूपम् (चक्रम्) चरति येन तत् (रथस्य) (येमथुः) गमयतम् (परि) सर्वतः (अन्या) अन्यानि (नाहुषा) मनुष्याणामिमानि (युगा) युगानि वर्षाणि वर्षसमूहा वा (मह्ना) महत्त्वेन (रजांसि) लोकान् (दीयथः) क्षयथः ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा रथचक्राणि भ्रमन्ति तथाऽहर्निशं कालचक्रं भ्रमति येन क्षणादियुगकल्पमहाकल्पादिका गणितविद्या सिद्ध्यतीति वित्त ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जशी रथाची चक्रे फिरतात तसे दिवस-रात्रीचे चक्र फिरते ज्यामुळे क्षण इत्यादी व युग, कल्प महाकल्प इत्यादीसंबंधी गणित विद्या संपन्न होते हे जाणा. ॥ ३ ॥