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विश्वे॒ हि वि॒श्ववे॑दसो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा। व्र॒ता प॒देव॑ सश्चिरे॒ पान्ति॒ मर्त्यं॑ रि॒षः ॥३॥

English Transliteration

viśve hi viśvavedaso varuṇo mitro aryamā | vratā padeva saścire pānti martyaṁ riṣaḥ ||

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Pad Path

विश्वे॑। हि। वि॒श्वऽवे॑दसः। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। व्र॒ता। प॒दाऽइ॑व। स॒श्चि॒रे॒। पान्ति॑। मर्त्य॑म्। रि॒षः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:67» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (विश्वे) सब (विश्ववेदसः) सम्पूर्ण विद्या और ऐश्वर्य्य पाये हुए (वरुणः) श्रेष्ठ (मित्रः) और सब का मित्र (अर्यमा) और न्यायकारी जन (पदेव) चलते हैं जिनसे उन चरणों के सदृश (व्रता) सत्याचरणरूप कर्म्मों को (सश्चिरे) प्राप्त होते वा जाते हैं और (रिषः) मारनेवाले से वा हिंसा से (मर्त्यम्) मनुष्य की (पान्ति) रक्षा करते हैं वे (हि) ही आप लोगों से आदर करने योग्य हैं ॥३॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे प्राणी पैरों से अभीष्ट एक स्थान से दूसरे स्थान को जाके अपने प्रयोजन को सिद्ध करते हैं वैसे ही सत्यभाषण आदि कर्म्मों को धर्म्ममार्ग के लिए प्राप्त होकर अभीष्ट आनन्द को सिद्ध करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये विश्वे विश्ववेदसो वरुणो मित्रोऽर्यमा च पदेव व्रता सश्चिरे रिषो मर्त्यं पान्ति ते हि युष्माभिर्माननीयाः सन्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (विश्वे) सर्वे (हि) (विश्ववेदसः) समग्रप्राप्तविद्यैश्वर्याः (वरुणः) श्रेष्ठः (मित्रः) सर्वेषां सखा (अर्यमा) न्यायकारी (व्रता) व्रतानि सत्याचरणरूपाणि कर्म्माणि (पदेव) पद्यन्ते यैस्तानि पदानि चरणानीव (सश्चिरे) प्राप्नुवन्ति गच्छन्ति वा। सश्चतीति गतिकर्म्मसु पठितम्। (निघं०२.२४) (पान्ति) रक्षन्ति (मर्त्यम्) मनुष्यम् (रिषः) हिंसकाद्धिंसाया वा ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा प्राणिनः पदैरभीष्टं स्थानान्तरं गत्वा स्वप्रयोजनं साध्नुवन्ति तथैव सत्यभाषणादीनि कर्माणि धर्मार्थं प्राप्याऽभीष्टमानन्दं साध्नुत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे प्राणी एका स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी जाऊन आपले प्रयोजन सिद्ध करतात. तसेच धर्मासाठी सत्यभाषण इत्यादी कर्म धर्मासाठी प्राप्त करून मनोवांछित आनंद प्राप्त करा. ॥ ३ ॥