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आ यद्योनिं॑ हिर॒ण्ययं॒ वरु॑ण॒ मित्र॒ सद॑थः। ध॒र्तारा॑ चर्षणी॒नां य॒न्तं सु॒म्नं रि॑शादसा ॥२॥

English Transliteration

ā yad yoniṁ hiraṇyayaṁ varuṇa mitra sadathaḥ | dhartārā carṣaṇīnāṁ yantaṁ sumnaṁ riśādasā ||

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Pad Path

आ। यत्। योनि॑म्। हि॒र॒ण्य॑म्। वरु॑ण। मित्र॑। सद॑थः। ध॒र्तारा॑। च॒र्ष॒णी॒नाम्। य॒न्तम्। सु॒म्नम्। रि॒शा॒द॒सा॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:67» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किसके तुल्य क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (रिशादसा) दुष्टों को दण्ड देनेवाले (मित्र) (वरुण) श्रेष्ठ (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (धर्त्तारा) धारण करनेवाले तुम (यत्) जिस (सुम्नम्) सुख को (यन्तम्) प्राप्त होते हुए और (हिरण्ययम्) तेजःस्वरूप (योनिम्) कारण को (आ) सब प्रकार से (सदथः) प्राप्त हो, उसको हम लोग भी प्राप्त होवें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे विद्वान् जन तेजःस्वरूप बिजुलीरूप सूर्य्य आदि कारण को जान के उपकार करते हैं, वैसे ही इसको करके मनुष्य सुख को प्राप्त हों ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किंवत् किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे रिशादसा मित्र वरुण ! चर्षणीनां युवा यत्सुम्नं यन्तं हिरण्ययं योनिमा सदथस्तं वयमप्याऽऽसीदेम ॥२॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (यत्) यत् (योनिम्) कारणम् (हिरण्ययम्) तेजोमयम् (वरुण) (मित्र) (सदथः) (धर्त्तारा) (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (यन्तम्) प्राप्नुवन्तम् (सुम्नम्) सुखम् (रिशादसा) दुष्टानां दण्डयितारौ ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा विद्वांसस्तेजोमयं विद्युद्रूपं सूर्य्यादिकारणं विज्ञायोपकुर्वन्ति तथैवैतत्कृत्वा मनुष्याः सुखं प्राप्नुवन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक तेजस्वी विद्युतरूपी सूर्य इत्यादी कारणाला जाणून सर्वांवर उपकार करतात तसेच वागून माणसांनी सुख प्राप्त करावे. ॥ २ ॥