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आ यद्वा॑मीयचक्षसा॒ मित्र॑ व॒यं च॑ सू॒रयः॑। व्यचि॑ष्ठे बहु॒पाय्ये॒ यते॑महि स्व॒राज्ये॑ ॥६॥

English Transliteration

ā yad vām īyacakṣasā mitra vayaṁ ca sūrayaḥ | vyaciṣṭhe bahupāyye yatemahi svarājye ||

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Pad Path

आ। यत्। वा॒म्। ई॒य॒ऽच॒क्ष॒सा॒। मित्रा॑। व॒यम्। च॒। सू॒रयः॑। व्यचि॑ष्ठे। ब॒हु॒ऽपाय्ये॑। यते॑महि। स्व॒ऽराज्ये॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:66» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:4» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को न्याय से राज्य की रक्षा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ईयचक्षसा) प्राप्त होने वा जानने योग्य दर्शन वा कथन जिनका वे (मित्रा) मित्र (वाम्) आप दोनों के (यत्) जिस (व्यचिष्ठे) अत्यन्त व्याप्त और (बहुपाय्ये) बहुतों से रक्षा करने योग्य राज्य (स्वराज्ये, च) और अपने राज्य में (सूरयः) विद्वान् जन (वयम्) हम लोग (आ) सब प्रकार से (यतेमहि) यत्न करें, उसमें यत्न करो ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि मित्रता करके अपने और दूसरे के राज्य की न्याय से रक्षा करके धर्म की उन्नति करें ॥६॥ इस सूक्त में मित्र और श्रेष्ठ विद्वान् के और विद्यायुक्त स्त्री के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छासठवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्न्यायेन राज्यं रक्षणीयमित्याह ॥ अत्र मित्रावरुणविद्वद्विदुषिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्षष्टितमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥

Anvay:

हे ईयचक्षसा मित्रा ! वां युवयोर्यद् व्यचिष्ठे बहुपाय्ये राज्ये स्वराज्ये च सूरयो वयमा यतेमहि तस्मिन् यतेयाथाम् ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (यत्) यस्मिन् (वाम्) युवाम् (ईयचक्षसा) ईयं प्राप्तव्यं ज्ञातव्यं वा चक्षो दर्शनं कथनं च ययोस्तौ (मित्रा) सखायौ (वयम्) (च) (सूरयः) विद्वांसः (व्यचिष्ठे) अतिशयेन व्याप्ते (बहुपाय्ये) बहुभी रक्षणीये (यतेमहि) (स्वराज्ये) स्वकीये राष्ट्रे ॥६॥
Connotation: - मनुष्यैर्मैत्रीं कृत्वा स्वं परकीयं च राज्यं न्यायेन रक्षित्वा धर्म्मोन्नतिः कार्य्येति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी मैत्री करून स्वतःच्या व इतरांच्या राज्याचे न्यायाने रक्षण करावे व धर्माची उन्नती करावी. ॥ ६ ॥