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यु॒वं मि॑त्रे॒मं जनं॒ यत॑थः॒ सं च॑ नयथः। मा म॒घोनः॒ परि॑ ख्यतं॒ मो अ॒स्माक॒मृषी॑णां गोपी॒थे न॑ उरुष्यतम् ॥६॥

English Transliteration

yuvam mitremaṁ janaṁ yatathaḥ saṁ ca nayathaḥ | mā maghonaḥ pari khyatam mo asmākam ṛṣīṇāṁ gopīthe na uruṣyatam ||

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Pad Path

यु॒वम्। मि॒त्रा॒। इ॒मम्। जन॑म्। यत॑यः। सम्। च॒। न॒य॒थः॒। मा। म॒घो॑नः। परि॑। ख्य॒त॒म्। मो इति॑। अ॒स्माक॑म्। ऋषी॑णाम्। गोऽपी॒थे। नः॒। उ॒रु॒ष्य॒त॒म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:65» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्रा) प्राण और उदान के समान वर्त्तमान अध्यापक और उपदेशक जनो ! (युवम्) आप दोनों (इमम्) इस (जनम्) उपदेश देने योग्य जन को (यतथः) प्रेरणा करते और (सम्, नयथः, च) प्राप्त कराते हैं तथा (मघोनः) बहुत धनों से युक्त (नः) हम लोगों का (मा) मत (परि, ख्यतम्) निरादर कीजिये और (ऋषीणाम्) वेदार्थ के जाननेवाले (अस्माकम्) हम लोगों का (गोपीथे) गौओं के पीने योग्य दुग्ध आदि में (मो) नहीं निरादर करिये और शुभ कर्म में हम लोगों को (उरुष्यतम्) प्रेरणा करिये ॥६॥
Connotation: - हे विद्वानो ! आप लोग सब लोगों को प्रयत्न से युक्त करके सुख को प्राप्त कराइये और हे विद्यार्थीजनो वा श्रोतृजनो ! आप लोग हम अध्यापक और उपदेशकों का अपमान मत करो, इस प्रकार वर्त्ताव कर सत्य धर्म का सेवन हम लोग करें ॥६॥ इस सूक्त में मित्रावरुणपदवाच्य अध्यापक और अध्ययन करने तथा उपदेश करने और उपदेश देने योग्यों के कर्मों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पैंसठवाँ सूक्त और तीसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मित्रा अध्यापकोपदेशकौ ! युवमिमं जनं यतथः सन्नयथश्च मघोनो नो मा परि ख्यतमृषीणामस्माकं गोपीथे मो परिख्यतं शुभे कर्मण्यस्मानुरुष्यतम् ॥६॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (मित्रा) (इमम्) (जनम्) उपदेश्यं मनुष्यम् (यतथः) प्रेरयथः (सम्) (च) (नयथः) प्रापयथः (मा) निषेधे (मघोनः) बहुधनयुक्तान् (परि) वर्जने (ख्यतम्) निराकुरुतम् (मो) निषेधे (अस्माकम्) (ऋषीणाम्) वेदार्थविदाम् (गोपीथे) गवां पेये दुग्धादौ (नः) अस्मान् (उरुष्यतम्) प्रेरयेतम् ॥६॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! भवन्तः सर्वान् जनान् प्रयतमानान् कृत्वा सुखं प्रापयन्तु। हे विद्यार्थिनः श्रोतारो वा ! यूयमस्मानध्यापकानुपदेशकान् कदाचिन्मावमन्यध्वमेव वर्त्तित्वा सत्यं धर्मं सेवेमहीति ॥६॥ अत्र मित्रावरुणाध्यापकाध्येत्रुपदेशकोपदेश्यकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चषष्टितमं सूक्तं तृतीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! तुम्ही सर्वांना प्रयत्नशील बनवा. सुख प्राप्त करवून द्या व हे विद्यार्थ्यांनो! श्रोतृजनांनो! तुम्ही आमच्या अध्यापक व उपदेशकाचा अपमान करू नका. या प्रकारे वागून आम्ही सत्य धर्म स्वीकारावा. ॥ ६ ॥