यन्नू॒नम॒श्यां गतिं॑ मि॒त्रस्य॑ यायां प॒था। अस्य॑ प्रि॒यस्य॒ शर्म॒ण्यहिं॑सानस्य सश्चिरे ॥३॥
yan nūnam aśyāṁ gatim mitrasya yāyām pathā | asya priyasya śarmaṇy ahiṁsānasya saścire ||
यत्। नू॒नम्। अ॒श्याम्। गति॑म्। मि॒त्रस्य॑। या॒या॒म्। प॒था। अस्य॑। प्रि॒यस्य॑। शर्म॑णि। अहिं॑सानस्य। स॒श्चि॒रे॒ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! अस्य प्रियस्याहिंसानस्य मित्रस्य शर्मणि यद्यां गतिं विद्वांसः सश्चिरे तामहं नूनमश्यां पथा यायाम् ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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