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धर्म॑णा मित्रावरुणा विपश्चिता व्र॒ता र॑क्षेथे॒ असु॑रस्य मा॒यया॑। ऋ॒तेन॒ विश्वं॒ भुव॑नं॒ वि रा॑जथः॒ सूर्य॒मा ध॑त्थो दि॒वि चित्र्यं॒ रथ॑म् ॥७॥

English Transliteration

dharmaṇā mitrāvaruṇā vipaścitā vratā rakṣethe asurasya māyayā | ṛtena viśvam bhuvanaṁ vi rājathaḥ sūryam ā dhattho divi citryaṁ ratham ||

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Pad Path

धर्म॑णा। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। वि॒पः॒ऽचि॒ता॒। व्र॒ता। र॒क्षे॒थे॒ इति॑। असु॑रस्य। मा॒यया॑। ऋ॒तेन॑। विश्व॑म्। भुव॑नम्। वि। रा॒ज॒थः॒। सूर्य॑म्। आ। ध॒त्थः॒। दि॒वि। चित्र्य॑म्। रथ॑म् ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:63» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:7 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विपश्चिताः) विद्वान् (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु के सदृश वर्त्तमानो ! जिससे आप दोनों (असुरस्य) मेघ के (मायया) आडम्बर से और (धर्मणा) धर्म से (व्रता) सत्यभाषण आदि व्रतों की (रक्षेथे) रक्षा करते हैं तथा (ऋतेन) यथार्थ से (विश्वम्) प्रविष्ट होते हैं (भुवनम्) वा होते हैं जिसमें उस सम्पूर्ण जगत् को (वि, राजथः) विशेष करके प्रकाशित करते हैं और (दिवि) प्रकाश में (सूर्यम्) सूर्य के सदृश (चित्र्यम्) अद्भुत में हुए (रथम्) वाहन को (आ, धत्थः) धारण करते हैं, इससे सत्कार करने के योग्य होते हैं ॥७॥
Connotation: - जो मनुष्य धर्मसम्बन्धी सत्यभाषण आदि व्रत वा कर्मों को करते हैं, वे सूर्य के सदृश सत्य से प्रकाशित होते हैं ॥७॥ इस सूक्त में मित्रावरुण और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह त्रेसठवाँ सूक्त और पहिला वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विपश्चिता मित्रावरुणा ! यतो युवामसुरस्य मायया धर्मणा व्रता रक्षेथे ऋतेन विश्वं भुवनं वि राजथो दिवि सूर्यमिव चित्र्यं रथमा धत्थस्तस्मात्सत्कर्त्तव्यौ भवथः ॥७॥

Word-Meaning: - (धर्मणा) (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव (विपश्चिता) विद्वांसौ (व्रता) सत्यभाषणादीनि व्रतानि (रक्षेथे) (असुरस्य) मेघस्य (मायया) आडम्बरेण (ऋतेन) यथार्थेन (विश्वम्) विशन्ति परस्मिंस्तत्सर्वम् (भुवनम्) भवन्ति यस्मिन् (वि, राजथः) विशेषेण प्रकाशेथे (सूर्यम्) (आ) (धत्थः) (दिवि) प्रकाशे (चित्र्यम्) अद्भुते भवम् (रथम्) यानम् ॥७॥
Connotation: - ये मनुष्या धर्म्मस्य सत्यभाषणादीनि व्रतानि कर्म्माणि वा कुर्वन्ति ते सूर्य्य इव सत्येन प्रकाशिता भवन्तीति ॥७॥ अत्र मित्रावरुणविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिषष्टितमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे धर्मासंबंधी सत्यभाषण इत्यादी व्रत किंवा कर्म करतात ती सूर्याप्रमाणे सत्याने प्रकाशित होतात. ॥ ७ ॥