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आ वा॒मश्वा॑सः सु॒युजो॑ वहन्तु य॒तर॑श्मय॒ उप॑ यन्त्व॒र्वाक्। घृ॒तस्य॑ नि॒र्णिगनु॑ वर्तते वा॒मुप॒ सिन्ध॑वः प्र॒दिवि॑ क्षरन्ति ॥४॥

English Transliteration

ā vām aśvāsaḥ suyujo vahantu yataraśmaya upa yantv arvāk | ghṛtasya nirṇig anu vartate vām upa sindhavaḥ pradivi kṣaranti ||

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Pad Path

आ। वा॒म्। अश्वा॑सः। सु॒ऽयुजः॑। व॒ह॒न्तु॒। य॒तऽर॑श्मयः। उप॑। य॒न्तु॒। अ॒र्वाक्। घृ॒तस्य॑। निः॒ऽनिक्। अनु॑। व॒र्त॒ते॒। वा॒म्। उप॑। सिन्ध॑वः। प्र॒ऽदिवि॑। क्ष॒र॒न्ति॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:62» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:30» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे वाहन के बनाने और चलानेवाले जनो ! जो जैसे (वाम्) आप दोनों के (सुयुजः) उत्तम प्रकार मिलनेवाले (यतरश्मयः) ग्रहण की गई किरणें वा रस्सियाँ जिनकी ऐसे (अश्वासः) अग्नि आदि पदार्थ वा घोड़े (घृतस्य) जल के (अर्वाक्) नीचे से (आ, वहन्तु) पहुँचावें और यानों को (उप, यन्तु) चलावें और (निर्णिक्) निर्णय करनेवाला सारथी (अनु, वर्त्तते) प्रवृत्त होता है और (प्रदिवि) प्रकाशस्वरूप अग्नि में (सिन्धवः) नदियाँ (वाम्) आप दोनों को (उप, क्षरन्ति) जल किंछती हैं, वैसा प्रयत्न कीजिये ॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य वाहनों में यन्त्रकलाओं को रच के नीचे अग्नि और ऊपर जल स्थापित करके और फिर उस अग्नि को प्रदीप्त करके मार्गों में चलावें तो बहुत लक्ष्मियाँ इनको प्राप्त हों ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे याननिर्मातृचालकौ ! ये यथा वां सुयुजो यतरश्मयोऽश्वासो घृतस्यार्वागा वहन्तु यानान्युप यन्तु यथा निर्णिगनु वर्त्तते प्रदिवि सिन्धवो वामुप क्षरन्ति तथा प्रयतेथाम् ॥४॥

Word-Meaning: - (आ) (वाम्) युवयोः (अश्वासः) अग्न्याद्यास्तुरङ्गा वा (सुयुजः) ये सुष्ठु युञ्जते ते (वहन्तु) गमयन्तु (यतरश्मयः) यता निगृहीता रश्मयः किरणा रज्जवो वा येषान्ते (उप) (यन्तु) गमयन्तु (अर्वाक्) अधस्तात् (घृतस्य) उदकस्य (निर्णिक्) यो निर्णेनेक्ति स सारथिः (अनु) (वर्त्तते) (वाम्) युवाम् (उप) (सिन्धवः) नद्यः (प्रदिवि) प्रद्योतनात्मकेऽग्नौ (क्षरन्ति) वर्षन्ति ॥४॥
Connotation: - यदि मनुष्या यानेषु यन्त्रकला रचयित्वाऽधोऽग्निमुपरि जलं संस्थाप्य प्रदीप्य मार्गेषु चालयेयुस्तर्हि पुष्कलाः श्रिय एतान् प्राप्नुयुः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर माणसांनी यानांमध्ये यंत्रकला निर्माण करून खाली अग्नी व वर जलाची स्थापना करून अग्नीला प्रदीप्त करून मार्गक्रमण केल्यास त्यांना पुष्कळ धन प्राप्त होते. ॥ ४ ॥