सन॒त्साश्व्यं॑ प॒शुमु॒त गव्यं॑ श॒ताव॑यम्। श्या॒वाश्व॑स्तुताय॒ या दोर्वी॒रायो॑प॒बर्बृ॑हत् ॥५॥
sanat sāśvyam paśum uta gavyaṁ śatāvayam | śyāvāśvastutāya yā dor vīrāyopabarbṛhat ||
सन॑त्। सा। अश्व्य॑म्। प॒शुम्। उ॒त। गव्य॑म्। श॒तऽअ॑वयम्। श्या॒वाश्व॑ऽस्तुताय। या। दोः। वी॒राय॑। उ॒प॒ऽबर्बृ॑हत् ॥५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
या श्यावाश्वस्तुताय वीराय दोरुपबर्बृहत् सा सनदश्व्यं गव्यमुत शतावयं पशुं वर्धयितुं शक्नोति ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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