के ष्ठा॑ नरः॒ श्रेष्ठ॑तमा॒ य एक॑एक आय॒य। प॒र॒मस्याः॑ परा॒वतः॑ ॥१॥
ke ṣṭhā naraḥ śreṣṭhatamā ya eka-eka āyaya | paramasyāḥ parāvataḥ ||
के। स्थ॒। न॒रः॒। श्रेष्ठ॑ऽतमाः। ये। एकः॑ऽएकः। आ॒ऽय॒य। प॒र॒मस्याः॑। प॒रा॒ऽवतः॑ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब उन्नीस ऋचावाले एकसठवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरों से मरुदादिकों के गुणों को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ प्रश्नोत्तरैर्मरुदादिगुणानाह ॥
हे श्रेष्ठतमा नरः! परमस्याः पारगन्तारः के यूयं स्था ये परावत आगत्य उपदिशन्ति येषां मध्य एकएको यूयं परावतो देशादेकमायय ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात प्रश्न, उत्तर व वायू इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्वसूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.