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पर्व॑तश्चि॒न्महि॑ वृ॒द्धो बि॑भाय दि॒वश्चि॒त्सानु॑ रेजत स्व॒ने वः॑। यत्क्रीळ॑थ मरुत ऋष्टि॒मन्त॒ आप॑इव स॒ध्र्य॑ञ्चो धवध्वे ॥३॥

English Transliteration

parvataś cin mahi vṛddho bibhāya divaś cit sānu rejata svane vaḥ | yat krīḻatha maruta ṛṣṭimanta āpa iva sadhryañco dhavadhve ||

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Pad Path

पर्व॑तः। चि॒त्। महि॑। वृ॒द्धः। बि॒भा॒य॒। दि॒वः। चि॒त्। सानु॑। रे॒ज॒त॒। स्व॒ने। वः॒। यत्। क्रीळथः। म॒रु॒तः॒। ऋ॒ष्टि॒ऽमन्तः॑। आपः॑ऽइव। स॒ध्र्य॑ञ्चः। ध॒व॒ध्वे॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:60» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ऋष्टिमन्तः) अच्छे विज्ञानवाले (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जहाँ तुम (क्रीळथ) क्रीड़ा करते हो (आपइव) जलों के सदृश (सध्र्यञ्चः) एक साथ गमन करते हुए (धवध्वे) कंपाओ और (वः) आप लोगों के (स्वने) शब्द में (पर्वतः) मेघ के (चित्) सदृश (महि) बड़ा (वृद्धः) वृद्ध (बिभाय) डरता है (दिवः) प्रकाश से (चित्) भी जैसे वैसे (सानु) शिखर के तुल्य (रेजत) कम्पित होता है, वहाँ अन्वेषण करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य विद्या के व्यवहार की सिद्धि के लिये क्रीड़ा करते हैं तथा मित्र होकर कार्य की सिद्धि करते हैं, वे सब प्रकार आनन्दित होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे ऋष्टिमन्तो मरुतो ! यद्यूयं क्रीळथाऽऽपइव सध्र्यञ्चो धवध्वे वः स्वने पर्वतश्चिन्महि वृद्धो बिभाय दिवश्चित्सानु रेजत तत्रान्वेषणं कुरुत ॥३॥

Word-Meaning: - (पर्वतः) मेघः (चित्) इव (महि) महान् (वृद्धः) (बिभाय) बिभेति (दिवः) प्रकाशात् (चित्) (सानु) शिखरमिव (रेजत) कम्पते (स्वने) शब्दे (वः) युष्माकम् (यत्) यत्र (क्रीळथ) (मरुतः) मनुष्याः (ऋष्टिमन्तः) प्रशस्तविज्ञानवन्तः (आपइव) (सध्र्यञ्चः) सहाञ्चन्तः (धवध्वे) कम्पयध्वे ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या विद्याव्यवहारसिद्धये क्रीडन्ते तथा सखायो भूत्वा कार्य्यसिद्धिं कुर्वन्ति ते सर्वथाऽऽनन्दिता जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे विद्येचा व्यवहार सिद्ध होण्यासाठी मनोरंजक कार्य करतात व मित्र बनून कार्य करतात ती सर्व प्रकारे आनंदित होतात. ॥ ३ ॥