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ते अ॑ज्ये॒ष्ठा अक॑निष्ठास उ॒द्भिदोऽम॑ध्यमासो॒ मह॑सा॒ वि वा॑वृधुः। सु॒जा॒तासो॑ ज॒नुषा॒ पृश्नि॑मातरो दि॒वो मर्या॒ आ नो॒ अच्छा॑ जिगातन ॥६॥

English Transliteration

te ajyeṣṭhā akaniṣṭhāsa udbhido madhyamāso mahasā vi vāvṛdhuḥ | sujātāso januṣā pṛśnimātaro divo maryā ā no acchā jigātana ||

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Pad Path

ते। अ॒ज्ये॒ष्ठाः। अक॑निष्ठासः। उ॒त्ऽभिदः॑। अम॑ध्यमासः। मह॑सा। वि। व॒वृ॒धुः॒। सु॒ऽजा॒तासः॑। ज॒नुषा॑। पृश्नि॑ऽमातरः। दि॒वः। मर्याः॑। आ। नः॒। अच्छ॑। जि॒गा॒त॒न॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:59» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जो (अज्येष्ठाः) नहीं विद्यमान ज्येष्ठ जिनके वा (अकनिष्ठासः) नहीं विद्यमान छोटा जिनके वा (उद्भिदः) पृथिवी को फोड़कर उगनेवाले तथा (अमध्यमासः) नहीं विद्यमान मध्यम जिनके वे (जनुषा) जन्म से (सुजातासः) उत्तम व्यवहारों में प्रसिद्ध वा (पृश्निमातरः) अन्तरिक्ष माता जिनका वे और (दिवः) कामना करते हुए (मर्याः) मनुष्य (महसा) बड़े बल आदि से (वि, वावृधुः) विशेष बढ़ते हैं (ते) वे (नः) हम लोगों की (अच्छा) उत्तम प्रकार (आ, जिगातन) सब ओर से प्रशंसा करते हैं ॥६॥
Connotation: - जो मनुष्यों में यथायोग्य उत्तम शिक्षा हो तो कनिष्ठ, मध्यम और उत्तम जन विचारशील होकर यथायोग्य जगत् की उन्नति कर सकें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! येऽज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदोऽमध्यमासो जनुषा सुजातासः पृश्निमातरो दिवो मर्या महसा वि वावृधुस्ते नोऽच्छाऽऽजिगातन ॥६॥

Word-Meaning: - (ते) (अज्येष्ठाः) अविद्यमानो ज्येष्ठो येषान्ते (अकनिष्ठासः) अविद्यमानाः कनिष्ठा येषान्ते (उद्भिदः) ये पृथिवीं भित्त्वा प्ररोहन्ति (अमध्यमासः) अविद्यमानो मध्यमो येषां ते (महसा) महता बलादिना (वि) (वावृधुः) वर्धन्ते (सुजातासः) शोभनेषु व्यवहारेषु प्रसिद्धाः (जनुषा) जन्मना (पृश्निमातरः) पृश्निरन्तरिक्षं माता येषान्ते (दिवः) कामयमानाः (मर्याः) मनुष्याः (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (जिगातन) प्रशंसन्ति ॥६॥
Connotation: - यदि मनुष्येषु यथावत्सुशिक्षा भवेत्तर्हि कनिष्ठा मध्यमोत्तमा जना विवेकिनो भूत्वा यथावज्जगदुन्नतिं कर्त्तुं शक्नुयुः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर माणसांमध्ये यथायोग्य उत्तम शिक्षण असेल तर कनिष्ठ, मध्यम व उत्तम लोक विचारशील होऊन जगाची यथायोग्य उन्नती करू शकतात. ॥ ६ ॥